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________________ दशम स्थान .. ७०३ १. क्रोध-निश्रित-मृषा- क्रोध के निमित्त से असत्य बोलना। २. मान-निश्रित-मृषा— मान के निमित्त से असत्य बोलना। ३. माया-निश्रित-मृषा— माया के निमित्त से असत्य बोलना। ४. लोभ-निश्रित-मृषा- लोभ के निमित्त से असत्य बोलना। ५. प्रेयोनिश्रित-मृषा— राग के निमित्त से असत्य बोलना। ६. द्वेष-निश्रित-मषा-द्वेष के निमित्त से असत्य बोलना। ७. हास्य-निश्रित-मषा-हास्य के निमित्त से असत्य बोलना। ८. भय-निश्रित-मषा- भय के निमित्त से असत्य बोलना। ९. आख्यायिका-निश्रित-मृषा- आख्यायिका अर्थात् कथा-कहानी को सरस या रोचक बनाने के निमित्त ' से असत्य मिश्रण कर बोलना।। १०. उपघात-निश्रित-मृषा- दूसरों को पीड़ा-कारक सत्य भी असत्य है। जैसे—काने को काना कह कर ___ पुकारना। इस प्रकार उपघात के निमित्त से मृषा या असत् वचन बोलना (९०)। ९१– दसविधे सच्चामोसे पण्णत्ते, तं जहा—उप्पण्णमीसए, विगतमीसए, उप्पण्णविगतमीसए, जीवमीसए, अजीवमीसए, जीवाजीवमीसए, अणंतमीसए, परित्तमीसए, अद्धामीसए, अद्धद्धामीसए। सत्यमृषा (मिश्र) वचन दश प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. उत्पन्न-मिश्रक-वचन- उत्पत्ति से संबद्ध सत्य-मिश्रित असत्य वचन बोलना। जैसे—'आज इस गांव __ में दश बच्चे उत्पन्न हुए हैं।' ऐसा बोलने पर एक अधिक या हीन भी हो सकता है। २. विगत-मिश्रक-वचन-विगत अर्थात् मरण से संबद्ध सत्य-मिश्रित असत्य वचन बोलना। जैसे-'आज ___ इस नगर में दश व्यक्ति मर गये हैं। ऐसा बोलने पर एक अधिक या हीन भी हो सकता है। ३. उत्पन्न-विगत-मिश्रक— उत्पत्ति और मरण से सम्बद्ध सत्य मिश्रित असत्य वचन बोलना। जैसे—आज इस नगर में दश बच्चे उत्पन्न हुए और दश ही बूढ़े मर गये हैं। ऐसा बोलने पर इससे एक-दो हीन या अधिक का जन्म या मरण भी संभव है। ४. जीव-मिश्रक-वचन- अधिक जीते हुए कृमि-कीटों के समूह में कुछ मृत जीवों के होने पर भी उसे जीवराशि कहना। ५. अजीव-मिश्रक-वचन- अधिक मरे हुए कृमि-कीटों के समूह में कुछ जीवितों के होने पर भी उसे मृत या अजीवराशि कहना। ६. जीव-अजीव-मिश्रक-वचन- जीवित और मृत राशि में संख्या को कहते हुए कहना कि इतने जीवित __ हैं और इतने मृत हैं। ऐसा कहने पर एक-दो के हीन या अधिक जीवित या मृत की भी संभावना है। ७. अनन्त-मिश्रक-वचन- पत्रादि संयुक्त मूल कन्दादि वनस्पति में 'यह अनन्तकाय है' ऐसा वचन बोलना अनन्त-मिश्रक मृषा वचन है। क्योंकि पत्रादि में अनन्त नहीं, किन्तु परीत (सीमित संख्यात या असंख्यात) ही जीव होते हैं। ८. परीत-मिश्रक-वचन- अनन्तकाय की अल्पता होने पर भी परीत वनस्पति में परीत का व्यवहार
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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