________________
७००
स्थानाङ्गसूत्रम्
१. उद्गमदोष-भिक्षासम्बन्धी दोष से होने वाला चारित्र का घात। २. उत्पादनादोष-भिक्षासम्बन्धी उत्पाद से होने वाला चारित्र का उपघात। ३. एषणादोष— गोचरी के दोष से होने वाला चारित्र का उपघात। ४. परिकर्मदोष— वस्त्र-पात्र आदि के संवारने से होने वाला चारित्र का उपघात। ५. परिहरणदोष- अकल्प्य उपकरणों के उपभोग से होने वाला चारित्र का उपघात। ६. प्रमाद आदि से होने वाला ज्ञान का उपघात। ७. शंका आदि से होने वाला दर्शन का उपघात। ८. समितियों के यथाविधि पालन न करने से होने वाला चारित्र का उपघात। ९. अप्रीति या अविनय से होने वाला विनय आदि गुणों का उपघात। १०. संरक्षण-उपघात— शरीर, उपधि आदि में मूर्छा रखने से होने वाला परिग्रह-विरमण का उपघात
(८४)। ८५– दसविधा विसोही पण्णत्ता, तं जहा—उग्गमविसोही, उप्पायविसोही, (एसणविसोही, परिकम्मविसोही, परिहरणविसोही, णाणविसोही, दंसणविसोही, चरित्तविसोही, अचियत्तविसोही), सारक्खणविसोही।
विशोधि दश प्रकार की कही गई है, जैसे१. उद्गम-विशोधि- उद्गम-सम्बन्धी दोषों की विशुद्धि। २. उत्पादना-विशोधि— उत्पादन-सम्बन्धी दोषों की विशुद्धि। ३. एषणा-विशोधि— एषणा-सम्बन्धी दोषों की विशुद्धि। ४. परिकर्म-विशोधि- वस्त्र-पात्रादि संवारने से उत्पन्न दोषों की विशुद्धि। ५. परिहरण-विशोधि— अकल्प्य उपकरणों के उपभोग से उत्पन्न दोषों की विशुद्धि। ६. ज्ञान-विशोधि— ज्ञान के अंगों का यथाविधि अभ्यास न करने से लगे हुए दोषों की विशुद्धि। ७. दर्शन-विशोधि- सम्यग्दर्शन में लगे हुए दोषों की विशुद्धि। ८. चारित्र-विशोधि-चारित्र में लगे हुए दोषों की विशुद्धि। ९. अप्रीति-विशोधि— अप्रीति की विशुद्धि। १०. संरक्षण-विशोधि- संयम के साधनभूत उपकरणों में मूर्छादि रखने से लगे हुए दोषों की विशुद्धि
(८५)। संक्लेश-असंक्लेश-सूत्र
८६- दसविधे संकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा—उवहिसंकिलेसे, उवस्सयसंकिलेसे, कसायसंकिलेसे, भत्तपाणसंकिलेसे, मणसंकिलेसे, वइसंकिलेसे, कायसंकिलेसे, णाणसंकिलेसे, दंसणसंकिलेसे, चरित्तसंकिलेसे।
संक्लेश दश प्रकार का कहा गया है, जैसे