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________________ ६९८ स्थानाङ्गसूत्रम् ७६- धम्मे णं अरहा दस वाससयहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे (बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख) प्पहीणे। अर्हन् धर्मनाथ दश लाख वर्ष की पूर्ण आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत और समस्त दुःखों से रहित हुए (७६)। ७७– णमी णं अरहा दस वाससहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे (बुद्धे, मुत्ते अंतगडे परिणिबुडे सव्वदुक्ख) प्पहीणे। ___अर्हन् नमि दश हजार वर्ष की पूर्ण आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत और समस्त दुःखों से रहित हुए (७७)। वासुदेव-सूत्र ७८- पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वाससयसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता छट्ठीए तमाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववण्णे। पुरुषसिंह नाम के पांचवें वासुदेव दश लाख वर्ष की पूर्ण आयु भोगकर 'तमा' नाम की छठी पृथिवी में नारक रूप से उत्पन्न हुए (७८)। तीर्थंकर-सूत्र ७९–णेमी णं अरहा दस धणूइं उर्दू उच्चत्तेणं, दस य वाससयाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे (बुद्धे, मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख) प्पहीणे। अर्हत् नेमि के शरीर की ऊंचाई दश धनुष की थी। वे एक हजार वर्ष की आयु पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत और समस्त दुःखों से रहित हुए (७९)। वासुदेव-सूत्र ८०- कण्हे णं वासुदेवे दस धणूई उड्ढे उच्चत्तेणं, दस य वाससयाइं सव्वाउयं पालइत्ता तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववण्णे। वासुदेव कृष्ण के शरीर की ऊंचाई दश धनुष की थी। वे दश सौ (१०००) वर्ष की पूर्णायु पालकर 'वालुकाप्रभा' नाम की तीसरी पृथिवी में नारक रूप से उत्पन्न हुए (८०)। भवनवासि-सूत्र ८१– दसविहा भवणवासी देवा पण्णत्ता, तं जहा—असुरकुमारा जाव थणियकुमारा। भवनवासी देव दश प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. असुरकुमार, २. नागकुमार, ३. सुपर्णकुमार, ४. विद्युत्कुमार, ५. अग्निकुमार, ६. द्वीपकुमार, ७. उदधिकुमार, ८. दिशाकुमार, ९. वायुकुमार, १०. स्तनितकुमार (८१)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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