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________________ ६८४ स्थानाङ्गसूत्रम् ३. गर्जन- आकाश में मेघों की घोर गर्जना के समय स्वाध्याय नहीं करना। ४. विद्युत्- तड़तड़ाती हुई बिजली के चमकने पर स्वाध्याय नहीं करना। ५. निर्घात – मेघों के होने या न होने पर आकाश के व्यन्तरादिकृत घोर गर्जन या वज्रपात के होने पर __ स्वाध्याय नहीं करना। ६. यूपक- सन्ध्या की प्रभा और चन्द्रमा की प्रभा एक साथ मिलने पर स्वाध्याय नहीं करना। ७. यक्षादीप्त— यक्षादि के द्वारा किसी एक दिशा में बिजली जैसा प्रकाश दिखने पर स्वाध्याय नहीं करना। ८. धूमिका- कोहरा होने पर स्वाध्याय नहीं करना। ९. महिका- तुषार या बर्फ गिरने पर स्वाध्याय नहीं करना। १०. रज-उद्घात- तेज आँधी से धूलि उड़ने पर स्वाध्याय नहीं करना (२०)। २१– दसविधे ओरालिए असल्झाइए पण्णत्ते, तं जहा—अट्ठि, मंसे, सोणिते, असुइसामंते, सुसाणसामंते, चंदोवराए, सूरोवराए, पडणे, रायवुग्गहे, उवस्सयस्स अंतो ओरालिए सरीरगे। औदारिक शरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय दश प्रकार का कहा गया है, जैसे१. अस्थि, २. मांस, ३. रक्त, ४. अशुचि, ५. श्मशान के समीप होने पर, ६. चन्द्र-ग्रहण, ७. सूर्य-ग्रहण के होने पर, ८. पतन—प्रमुख व्यक्ति के मरने पर, ९. राजविप्लव होने पर, १०. उपाश्रय के भीतर सौ हाथ औदारिक कलेवर के होने पर स्वाध्याय करने का निषेध किया गया है (२१)। संयम-असंयम-सूत्र २२– पंचिंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स दसविधे संजमे कजति, तं जहा सोतामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति। सोतामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति। (चक्खुमयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति। चक्खुमएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति। घाणामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति। घाणामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति। जिब्भामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति। जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति। फासामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति।) फासामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति। पंचेन्द्रिय जीवों का घात नहीं करने वाले के दश प्रकार का संयम होता है, जैसे— १. श्रोत्रेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से। २. श्रोत्रेन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से। ३. चक्षुरिन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से। ४. चक्षुरिन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से। ५. घ्राणेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से। ६. घ्राणेन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से। ७. रसनेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से। ८. रसनेन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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