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________________ ६६८ स्थानाङ्गसूत्रम् बावत्तरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिस्सं (बुझिस्सं मुच्चिस्सं परिणिव्वाइस्सं) सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सं। एवामेव महापउमेवि अरहा तीसं वासाइं अगारवासमझे वसित्ता (मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं) पव्वाहिती, दुवालस संवच्छराई (तेरसपक्खा छउमंत्थपरियागं पाउणित्ता, तेरसहिं पक्खेहिं ऊणगाइं तीसं वासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता), बावत्तरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिहिती (बुझिहिती मुच्चिहिती परिणिव्वाइहिती), सव्वदुक्खाणमंतं काहिती संग्रहणी-गाथा जस्सील-समायारो, अरहा तित्थंकरो महावीरो । तस्सील-समायारो, होति उ अरहा महापउमो ॥१॥ आर्यो! श्रेणिक राजा भिम्भसार (बिम्बसार) काल मास में काल कर इसी रत्नप्रभा पृथ्वी के सीमन्तक नरक में चौरासी हजार वर्ष की स्थिति वाले नारकीय भाग में नारक रूप से उत्पन्न होगा (६२)। उसका वर्ण काला, काली आभावाला, गम्भीर लोमहर्षक, भयंकर, त्रासजनक और परम कृष्ण होगा। वह वहाँ ज्वलन्त मन, वचन और काय तीनों को तोलने वाली-जिसमें तीनों योग तन्मय हो जाएंगे ऐसी प्रगाढ, कटुक, कर्कश, प्रचण्ड, दुःखकर दुर्ग के समान अलंध्य, ज्वलन्त, असह्य वेदना का वेदन करेगा। वह उस नरक से निकल कर आगामी उत्सर्पिणी में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में, वैताढ्यगिरि के पादमूल में 'पुण्ड्र' जनपद के शतद्वार नगर में सन्मति कुलकर की भद्रा नामक भार्या की कुक्षि में पुरुष रूप से उत्पन्न होगा। वह भद्रा भार्या परिपूर्ण नौ मास तथा साढ़े सात दिन-रात बीत जाने पर सुकुमार हाथ-पैर वाले, अहीनपरिपूर्ण, पंचेन्द्रिय शरीर वाले लक्षण, व्यंजन और गुणों से युक्त अवयव वाले, मान, उन्मान, प्रमाण आदि से सर्वांग सुन्दर शरीर के धारक, चन्द्र के समान सौम्य आकार, कान्त, प्रियदर्शन और सुरूप पुत्र को उत्पन्न करेगी। जिस रात में वह बालक जनेगी. उस रात में सारे शतद्वार नगर में भीतर और बाहर भार और कुम्भ प्रमाण वाले पद्म और रत्नों की वर्षा होगी। उस बालक के माता-पिता ग्यारह दिन व्यतीत हो जाने पर, अशुचिकर्म के निवृत्त हो जाने पर बारहवें दिन उसका यथार्थ गुणनिष्पन्न नाम संस्कार करेंगे। यतः हमारे इस बालक के उत्पन्न होने पर समस्त शतद्वार नगर के भीतर-बाहर भार और कुम्भ प्रमाणवाले पद्म और रत्नों की वर्षा हुई है, अतः हमारे बालक का नाम महापद्म होना चाहिए। इस प्राकर विचार-विमर्श कर उस बालक के माता-पिता उसका नाम 'महापद्म' निर्धारित करेंगे। तब महापद्म को कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ जानकर उसके माता-पिता उसे महान् राज्याभिषेक के द्वारा अभिषिक्त करेंगे। वह वहाँ महान् हिमवान्, महान् मलय, मन्दर और महेन्द्र पर्वत के समान सर्वोच्च राज्यधर्म का पालन करता हुआ, यावत् राज्य-शासन करता हुआ विचरेगा। तब उस महापद्म राजा को अन्य किसी समय महर्धिक, महाद्युति-सम्पन्न, महानुभाग, महायशस्वी, महाबली, महान् सौख्य वाले पूर्णभद्र और माणिभद्र नाम के धारक दो देव सैनिक कर्म सेना सम्बन्धी कार्य करेंगे। तब उस शतद्वार नगर में अनेक राजा, ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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