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________________ नवम स्थान ६५१ रोगोत्पत्ति-सूत्र १३–णवहिं ठाणेहिं रोगुप्पत्ती सिया, तं जहा—अच्चासणयाए, अहितासणयाए, अतिणिहाए, अतिजागरितेणं, उच्चारणिरोहेणं, पासवणणिरोहेणं, अद्धाणगमणेणं, भोयणपडिकूलताए, इंदियत्थविकोवणयाए। नौ स्थानों कारणों से रोग की उत्पत्ति होती है, जैसे१. अधिक बैठे रहने से, या अधिक भोजन करने से। २. अहितकर आसन से बैठने से, या अहितकर भोजन करने से। ३. अधिक नींद लेने से, ४. अधिक जागने से, ५. उच्चार (मल) का निरोध करने से, ६. प्रस्रवण (मूत्र) का वेग रोकने से, ७. अधिक मार्ग-गमन से, ८. भोजन की प्रतिकूलता से, • ९. इन्द्रियार्थ-विकोपन अर्थात् काम-विकार से (१३) । दर्शनावरणीयकर्म-सूत्र १४–णवविधे दरिसणावरणिज्जे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा—णिद्दा, णिहानिहा, पयला, पयलापयला, थीणगिद्धी, चक्खुदंसणावरणे, अचक्खुदंसणावरणे, ओहिदसणावरणे, केवलदसणावरणे। दर्शनावरणीय कर्म नौ प्रकार का कहा गया है, जैसे१. निद्रा— हल्की नींद सोना, जिससे सुखपूर्वक जगाया जा सके। २. निद्रानिद्रा— गहरी नींद सोना, जिससे कठिनता से जगाया जा सके। ३. प्रचला— खड़े या बैठे हुए ऊंघना। ४. प्रचला-प्रचला— चलते-चलते सोना। ५. स्त्यानर्द्धि- दिन में सोचे काम को निद्रावस्था में कराने वाली घोर निद्रा। ६. चक्षुदर्शनावरण- चक्षु के द्वारा होने वाले वस्तु के सामान्य रूप के अवलोकन या प्रतिभास का आवरण __ करने वाला कर्म। ७. अचक्षुदर्शनावरण— चक्षु के सिवाय शेष इन्द्रियों और मन से होने वाले सामान्य अवलोकन या प्रतिभास ___ का आवरक कर्म। ८. अवधिदर्शनावरण— इन्द्रिय और मन की सहायता बिना मूर्त पदार्थों के सामान्य दर्शन का प्रतिबन्धक कर्म। ९. केवलदर्शनावरण- सर्व द्रव्य और पर्यायों के साक्षात् दर्शन का आवरक कर्म (१४)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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