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________________ ६४८ स्थानाङ्गसूत्रम् होता है। ९. ब्रह्मचारी सातावेदनीय-जनित सुख में प्रतिबद्ध-आसक्त नहीं होता है (३)। ब्रह्मचर्य-अगुप्ति-सूत्र ४- णव बंभचेरअगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—१. णो विवित्ताई सयणासणाई सेवित्ता भवति इत्थिसंसत्ताई पसुसंसत्ताई पंडगसंसत्ताई। २. इत्थीणं कहं कहेत्ता भवति। ३. इत्थिठाणाई सेवित्ता भवति। ४. इत्थीणं इंदियाई (मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता) णिज्झाइत्ता भवति। ५. पणीयरसभोई [ भवति?]। ६. पायभोयणस्स अइमायमाहारए सया भवति। ७. पुव्वरयं पुळ्कीलियं सरित्ता भवति। ८. सद्दाणुवाई रूवाणुवाई सिलोगाणुवाई [ भवति ?]। ९. सायासोक्खपडिबद्धे यावि भवति। ब्रह्मचर्य की नौ अगुप्तियाँ या विराधिकाएं कही गई हैं, जैसे१. जो ब्रह्मचारी एकान्त में शयन-आसन का सेवन नहीं करता है, किन्तु स्त्रीसंसक्त, पशुसंसक्त और नपुंसक ___ के संसर्गवाले स्थानों का सेवन करता है। २. जो ब्रह्मचारी स्त्रियों की कथा करता है। ३. जो ब्रह्मचारी स्त्रियों के बैठने-उठने के स्थानों का सेवन करता है। ४. जो ब्रह्मचारी स्त्रियों की मनोहर और मनोरम इन्द्रियों को देखता है और उनका चिन्तन करता है। ५. जो ब्रह्मचारी प्रणीत रसवाला भोजन करता है। ६. जो ब्रह्मचारी सदा अधिक मात्रा में आहार-पान करता है। ७. जो ब्रह्मचारी पूर्वकाल में भोगे हुए भोगों और स्त्रीक्रीड़ाओं का स्मरण करता है। ८. जो ब्रह्मचारी मनोज्ञ शब्दों को सुनने का, सुन्दर रूपों को देखने का और कीर्ति-प्रशंसा का अभिलाषी ___ होता है। ९. जो ब्रह्मचारी सातावेदनीय-जनित सुख में प्रतिबद्ध-आसक्त होता है (४)। तीर्थंकर-सूत्र ५- अभिणंदणाओ णं अरहओ सुमती अरहा णवहिं सागरोवमकोडीसयसहस्सेहिं वीइक्कतेहिं समुप्पण्णे। ___ अर्हत् अभिनन्दन के अनन्तर नौ लाख करोड़ सागरोपमकाल व्यतीत हो जाने पर अर्हत् सुमति देव उत्पन्न हुए (५)। सद्भावपदार्थ-सूत्र ६- णव सब्भावपयत्था पण्णत्ता, तं जहा—जीवा, अजीवा, पुण्णं, पावं, आसवो, संवरो, णिज्जरा, बंधो, मोक्खो। सद्भाव रूप पारमार्थिक पदार्थ नौ कहे गये हैं, जैसे
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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