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________________ नवम स्थान ६४७ १. शस्त्र-परिज्ञा— जीव-घात के कारणभूत द्रव्य-भावरूप शस्त्रों के ज्ञानपूर्वक प्रत्याख्यान का वर्णन ___करनेवाला अध्ययन। २. लोक-विजय राग-द्वेष रूप भावलोक का विजय या निराकरण प्रतिपादक अध्ययन। ३. शीतोष्णीय- शीत अर्थात् अनुकूल और उष्ण अर्थात् प्रतिकूल परीषहों के सहने का वर्णन करने वाला अध्ययन। ४. सम्यक्त्व- दृष्टि-व्यामोह को छुड़ाकर सम्यक्त्व की दृढ़ता का प्रतिपादक अध्ययन । ५. आवन्ती-लोकसार— अज्ञानादि असार तत्त्वों को छुड़ाकर लोक में सारभूत रत्नत्रय की श्रेष्ठता का प्रतिपादक अध्ययन। ६. धूत— परिग्रहों के धोने अर्थात् त्यागने का वर्णन करने वाला अध्ययन। ७. विमोह- परीषह और उपसर्गों के आने पर होनेवाले मोह के त्यागने और परीषहादि को सहने का वर्णन __करनेवाला अध्ययन। ८. उपधानश्रुत- भ० महावीर द्वारा आचरित उपधान अर्थात् तप का प्रतिपादक श्रुत अर्थात् अध्ययन। ९. महापरिज्ञा- जीवन के अन्त में समाधिमरणरूप अन्तक्रिया सम्यक् प्रकार करनी चाहिए, इसका प्रतिपादक अध्ययन। उक्त नौ स्थान ब्रह्मचर्य के कहे गये हैं (२)। ब्रह्मचर्य-गुप्ति-सूत्र ३- णव बंभचेरगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—१. विवित्ताइं सयणासणाई सेवित्ता भवतिणो इत्थिसंसत्ताई णो पसुसंसत्ताई णो पंडगसंसत्ताई। २. णो इत्थीणं कहं कहेत्ता भवति। ३. णो इस्थिठाणाइं सेवित्ता भवति। ४. णो इत्थीणमिंदियाई मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता णिज्झाइत्ता भवति। ५. णो पणीतरसभोई [भवति ?]। ६. णो पायभोयणस्स अतिमातमाहारए सया भवति। ७. णो पुव्वरतं पुळकीलियं सरेत्ता भवति। ८. णो सद्दाणुवाती णो रूवाणुवाती णो सिलोगाणुवाती [भवति?]। ९. णो सातसोक्खपडिबद्धे यावि भवति। ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियाँ (बाड़ें) कही गई हैं, जैसे१. ब्रह्मचारी एकान्त में शयन और आसन करता है, किन्तु स्त्रीसंसक्त, पशुसंसक्त और नपुंसक के संसर्गवाले स्थानों का सेवन नहीं करता है। २. ब्रह्मचारी स्त्रियों की कथा नहीं करता है। ३. ब्रह्मचारी स्त्रियों के बैठने-उठने के स्थानों का सेवन नहीं करता है। ४. ब्रह्मचारी स्त्रियों की मनोहर और मनोरम इन्द्रियों को नहीं देखता है। ५. ब्रह्मचारी प्रणीतरस—घृत-तेलबहुल-भोजन नहीं करता है। ६. ब्रह्मचारी सदा अधिक मात्रा में आहार-पान नहीं करता है। ७. ब्रह्मचारी पूर्वकाल में भोगे हुए भोगों और स्त्रीक्रीड़ाओं का स्मरण नहीं करता है। ८. ब्रह्मचारी मनोज्ञ शब्दों को सुनने का, सुन्दर रूपों को देखने का और कीर्ति-प्रशंसा का अभिलाषी नहीं
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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