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स्थानाङ्गसूत्रम्
प्रतिमा-सूत्र
१०४- अट्ठट्टमिया णं भिक्खुपडिमा चउसट्ठीए राइंदिएहिं दोहि य अट्ठासीतेहिं भिक्खासतेहिं अहासुत्तं (अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं काएणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया) अणुपालितावि भवति।
अष्टाष्टमिका भिक्षुप्रतिमा ६४ दिन-रात तथा २८८ भिक्षादत्तियों के द्वारा यथासूत्र, यथाअर्थ, यथातत्त्व, यथामार्ग, यथाकल्प तथा सम्यक् प्रकार काया से स्पृष्ट, पालित, शोधित, तीरित और अनुपालित की जाती है (१०४)।
जीव-सूत्र
१०५— अट्ठविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा—पढमसमयणेरड्या, अपढमसमयणेरइया, (पढमसमयतिरिया, अपढमसमयतिरिया, पढमसमयमणुया, अपढमसमयमणुया, पढमसमयदेवा), अपढमसमयदेवा।
संसार-समापन्नक जीव आठ प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. प्रथम समय नारक- नरकायु के उदय के प्रथम समय वाले नारक। २. अप्रथम समय नारक- प्रथम समय के सिवाय शेष समय वाले नारक। ३. प्रथम समय तिर्यंच-तिर्यगायु के उदय के प्रथम समय वाले तिर्यंच। ४. अप्रथम समय तिर्यंच- प्रथम समय के सिवाय शेषसमय वाले तिर्यंच। ५. प्रथम समय मनुष्य- मनुष्यायु के उदय के प्रथम समय वाले मनुष्य। ६. अप्रथम समय मनुष्य-प्रथम समय के सिवाय शेष समय वाले मनुष्य। ७. प्रथम समय देव- देवायु के उदय के प्रथम समय वाले देव। ८. अप्रथम समय देव- प्रथम समय के सिवाय शेष समय वाले देव (१०५)।
१०६- अट्ठविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा णेरड्या, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्खजोणिणीओ, मणुस्सा, मणुस्सीओ, देवा, देवीओ, सिद्धा।
अहवा–अट्ठविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा—आभिणिबोहियणाणी, (सुयणाणी, ओहिणाणी, मणपजवणाणी), केवलणाणी, मतिअण्णाणी, सुतअण्णाणी, विभंगणाणी।
सर्वजीव आठ प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. नारक, २. तिर्यग्योनिक, ३. तिर्यग्योनिकी, ४. मनुष्य, ५. मानुषी, ६. देव, ७. देवी, ८. सिद्ध । अथवा सर्वजीव आठ प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आभिनिबोधिकज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी, ३. अवधिज्ञानी, ४. मन:पर्यवज्ञानी, ५. केवलज्ञानी, ६. मत्यज्ञानी,
७. श्रुताज्ञानी, ८.विभंगज्ञानी (१०६)। संयम-सूत्र
१०७- अट्ठविधे संजमे पण्णत्ते, तं जहा—पढमसमयसुहमसंपरायसरागसंजमे, अपढमसमय