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________________ सप्तम स्थान ५९५ माहेन्द्र के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में ७० हजार देव हैं। ब्रह्म के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में ६० हजार देव हैं। लान्तक के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में ५० हजार देव हैं। शुक्र के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में ४० हजार देव हैं। सहस्रार के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में ३० हजार देव हैं। प्राणत के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में २० हजार देव हैं। अच्युत के पदातिसेना के अधिपति की पहली कक्षा में १० हजार देव हैं। देवों का उक्त परिमाण इस गाथा के अनुसार जानना चाहिए - चौरासी हजार, अस्सी हजार, बहत्तर हजार, सत्तर हजार, साठ हजार, पचास हजार, चालीस हजार, तीस हजार, बीस हजार और दश हजार है। उक्त सर्व देवेन्द्रों की शेष कक्षाओं के देवों का प्रमाण पहली कक्षा के देवों के परिमाण से सातवीं कक्षा तक दुगुना- दुगुना जानना चाहिए (१२८)। वचन-विकल्प-सूत्र १२९— सत्तविहे वयणविकप्पे पण्णत्ते, तं जहा—आलावे, अणालावे, उल्लावे, अणुल्लावे, संलावे, पलावे, विप्पलावे। वचन-विकल्प (बोलने के भेद) सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आलाप- कम बोलना। २. अनालाप-खोटा बोलना। ३. उल्लाप- काकु ध्वनि-विकार के साथ बोलना। ४. अनुल्लाप- कुत्सित ध्वनि-विकार के साथ बोलना। ५. संलाप- परस्पर बोलना। ६. प्रलाप-निरर्थक बकवाद करना। ७. विप्रलाप– विरुद्ध वचन बोलना (१२९)। विनय-सूत्र १३०— सत्तविहे विणए पण्णत्ते, तं जहा—णाणविणए, दसणविणए, चरित्तविणए, मणविणए, वइविणए, कायविणए, लोगोवयारविणए। विनय सात प्रकार का कहा गया है, जैसे१. ज्ञान-विनय- ज्ञान और ज्ञानवान् की विनय करना, गुरु का नाम न छिपाना आदि। २. दर्शन-विनय- सम्यग्दर्शन और सम्यग्दृष्टि का विनय करना, उसके आचारों का पालन करना। ३. चारित्र-विनय- चारित्र और चारित्रवान् का विनय करना, चारित्र धारण करना। ४. मनोविनय- मन की अशुभ प्रवृत्ति रोकना, शुभ प्रवृत्ति में लगाना।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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