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सप्तम स्थान
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५. काकस्वर दोष- काक के समान कर्ण-कटु स्वर से गाना। ६. अनुनास दोष— नाक के स्वरों से गाना। गीत के आठ गुण इस प्रकार हैं१. पूर्ण गुण— स्वर के आरोह-अवरोह आदि से परिपूर्ण गाना। २. रक्त गुण— गाये जाने वाले राग से परिष्कृत गाना। ३. अलंकृत गुण— विभिन्न स्वरों से सुशोभित गाना। ४. व्यक्त गुण— स्पष्ट स्वर से गाना। ५. अविघुष्ट गुण— नियत या नियमित स्वर से गाना। ६. मधुर गुण- मधुर स्वर से गाना। ७. सम गुण-ताल, वीणा आदि का अनुसरण करते हुए गाना। ८. सुकुमार गुण- ललित, कोमल लय से गाना। गीत के ये आठ गुण और भी होते हैं१. उरोविशुद्ध-जो स्वर उरःस्थल में विशाल होता है। २. कण्ठविशुद्ध- जो स्वर कण्ठ में नही फटता है। ३. शिरोविशुद्ध– जो स्वर शिर से उत्पन्न होकर भी नासिका से मिश्रित नहीं होता। ४. मृदु- जो राग कोमल स्वर से गाया जाता है। ५. रिभित— घोलना-बहुल आलाप के कारण खेल-सा करता हुआ स्वर। ६. पद-बद्ध-गेय पदों से निबद्ध रचना। ७. समताल पादोत्क्षेप— जिसमें ताल, झांझ आदि का शब्द और नर्त्तक का पादनिक्षेप, ये सब सम ___हों, अर्थात् एक दूसरे से मिलते हों। ८. सप्तस्वरसीभर-जिसमें सातों स्वर तंत्री आदि के सम हों। गेय पदों के आठ गुण इस प्रकार हैं१. निर्दोष— बत्तीस दोष-रहित होना। २. सारवन्त- सारभूत अर्थ से युक्त होना। ३. हेतुयुक्त- अर्थ-साधक हेतु से संयुक्त होना। ४. अलंकृत– काव्य-गत अलंकारों से युक्त होना। ५. उपनीत — उपसंहार से युक्त होना। ६. सोपचार- कोमल, अविरुद्ध और अलज्जनीय अर्थ का प्रतिपादन करना, अथवा व्यंग्य या हंसी से
संयुक्त होना। ७. मित— अल्प पद और अल्प अक्षर वाला होना। ८. मधुर- शब्द, अर्थ और प्रतिपादन की अपेक्षा प्रिय होना। वृत्त— छन्द तीन प्रकार के होते हैं
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