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________________ ५७२ स्थानाङ्गसूत्रम् उर-कंठ-सिर-विसुद्धं, च गिजते मयउ-रिभिअ-पदबद्धं। समतालपदुक्खेवं, सत्तसरसीहरं गेयं ॥७॥ णिद्दोसं सारवंतं च, हेउजुत्तमलंकियं ।। उवणीतं सोवयारं च, मितं मधुरमेव य ॥८॥ सममद्धसमं चेव, सव्वत्थ विसमं च जं । तिण्णि वित्तप्पयाराई, चउत्थं णोपलब्भती ॥९॥ सक्कता पागता चेव, दोण्णि य भणिति आहिया ।। सरमंडलंमि गिजंते पसत्था इसिभासिता ॥१०॥ केसी गायति मधुरं ? केसी गायति खरं च रुक्खं च ? केसी गायति चउरं ? केसी विलंबं ? दुतं केसी ? विस्सरं पुण केरिसी ? ॥११॥ सामा गायाइ मधुरं, काली गायइ खरं च रुक्खं च । गोरी गायति चउरं, काण विलंबं दुतं अंधा ॥ विस्सरं पुण पिंगला ॥१२॥ तंतिसमं तालसमं, पादसमं लयसमं गहसमं च । णीससिऊससियसमं संचारसमा सरा सत्त ॥ १३॥ सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा एकविंसती । ताणा एगूणपण्णासा, समत्तं सरमंडलं ॥१४॥ (१) प्रश्न - सातों स्वर किससे उत्पन्न होते हैं ? गीत की योनि क्या है ? उसका उच्छ्वासकाल कितने समय का है? और गीत के आकार कितने होते हैं ? (२-३) उत्तर- सातों स्वर नाभि से उत्पन्न होते हैं। रुदन गेय की योनि है। जितने समय में किसी छन्द का एक चरण गाया जाता है, उतना उसका उच्छ्वासकाल होता है। गीत के तीन आकार होते हैं ___ आदि में मृदु, मध्य में तीव्र और अन्त में मन्द। (४) गीत के छह दोष, आठ गुण, तीन वृत्त और दो भणितियां होती हैं। जो इन्हें जानता है, वही सुशिक्षित व्यक्ति रंगमंच पर गा सकता है। गीत के छह दोष इस प्रकार हैं१. भीत दोष- डरते हुए गाना। २. द्रुत दोष- शीध्रता से गाना। ३. ह्रस्व दोष— शब्दों को लघु बना कर गाना। ४. उत्ताल दोष- ताल के अनुसार न गाना।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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