SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 633
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६६ गोत्र-सूत्र ३०- सत्त मूलगोत्ता पण्णत्ता, तं जहा— कासवा, गोतमा, वच्छा, कोच्छा, कोसिआ, मंडवा, वासिट्ठा । मूल गोत्र (एक पुरुष से उत्पन्न हुई वंश-परम्परा) सात कहे गये हैं, जैसे— १. काश्यप, २. गौतम, ३. वत्स, ४. कुत्स, ५. कौशिक, ६. माण्डव, ७. वाशिष्ठ (३०) । स्थानाङ्गसूत्रम् विवरण — किसी एक महापुरुष से उत्पन्न हुई वंश-परम्परा को गोत्र कहते हैं। प्रारम्भ में ये सूत्रोक्त सात मूल गोत्र थे। कालान्तर में उन्हीं से अनेक उत्तर गोत्र भी उत्पन्न हो गये। संस्कृतटीका के अनुसार सातों मूल गोत्रों का परिचय इस प्रकार है १. काश्यपगोत्र मुनिसुव्रत और अरिष्टनेमि जिन को छोड़कर शेष बाईस तीर्थंकर, सभी चक्रवर्ती (क्षत्रिय), सातवें से ग्यारहवें गणधर (ब्राह्मण) और जम्बूस्वामी (वैश्य) आदि ये सभी काश्यप गोत्रीय थे । २. गौतम गोत्र —– मुनिसुव्रत और अरिष्टनेमि जिन, नारायण और पद्म को छोड़कर सभी बलदेव - वासुदेव तथा इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति, ये तीन गणधर गौतम गोत्रीय थे । ३. वत्सगोत्र—– दशवैकालिक के रचियता शय्यम्भव आदि वत्सगोत्रीय थे। ४. कौत्स — शिवभूति आदि कौत्स गोत्रीय थे । ५. कौशिक गोत्र — षडुलुक (रोहगुप्त) आदि कौशिक गोत्रीय थे। ६. माण्डव्य गोत्र – मण्डुऋषि के वंशज माण्डव्य गोत्रीय कहलाये । ७. वाशिष्ठ गोत्र वशिष्ठ ऋषि के वंशज वाशिष्ठ गोत्रीय कहे जाते हैं तथा छठे गणधर और आर्य सुहस्ती आदि को भी वाशिष्ठ गोत्रीय कहा गया है। ३१ - जे कासवा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा ते कासवा, ते संडिल्ला, ते गोला, ते वाला, ते मुंजइणो, ते पव्वतिणो, ते वरसकण्हा । जो काश्यप गोत्रीय हैं, वे सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. काश्यप, २. शाण्डिल्य, ३. गोल, ४. बाल, ५. मौज्जकी, ६. पर्वती, ७. वर्षकृष्ण (३१) । ३२- जे गोतमा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा ते गोतमा, ते गग्गा, ते भारद्दा, ते अंगिरसा, ते सक्कराभा, ते भक्खराभा, ते उदत्ताभा । गौतम गोत्रीय सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. गौतम, २. गार्ग्य, ३. भारद्वाज, ४. आङ्गिरस, ५. शर्कराभ, ६. भास्कराभ, ७. उदत्ताभ (३२) । ३३- जे वच्छा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा ते वच्छा, ते अग्गेया, ते मित्तेया, ते सामलिणो, ते सेलयया, ते अट्ठिसेणा, ते वीयकण्हा । स हैं, वे सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. वत्स, २. आग्नेय, ३. मैत्रेय, ४. शाल्मली, ५. शैलक, ६. अस्थिषेण, ७. वीतकृष्ण ( ३३ ) ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy