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________________ ५६० स्थानाङ्गसूत्रम् २. (आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आधारातिणियाए कितिकम्मं णो सम्मं पउंजित्ता भवति। ३. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते काले-काले णो सम्ममणुप्पवा इत्ता भवति। ४. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं णो सम्ममब्भुट्टित्ता भवति। ५. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि अणापुच्छियचारी यावि हवइ, णो आपुच्छियचारी। ६. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि अणुप्पंण्णाई उवगरणाई णो सम्म उप्पाइत्ता भवति। ७. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि) पच्चुप्पण्णाणं उवगरणाणं णो सम्मं सारक्खेत्ता संगोवेत्ता भवति। आचार्य और उपाध्याय के लिए गण में सात असंग्रहस्थान कहे गये हैं, जैसे१. आचार्य और उपाध्याय गण में आज्ञा एवं धारणा का सम्यक् प्रयोग न करें। २. आचार्य और उपाध्याय गण में यथारात्निक कृतिकर्म का सम्यक् प्रयोग न करें। ३. आचार्य और उपाध्याय जिन-जिन सूत्र-पर्यवजातों को धारण करते हैं, उनकी यथाकाल गण को सम्यक् वाचना न देवें। ४. आचार्य और उपाध्याय ग्लान एवं शैक्ष साधुओं की यथोचित वैयावृत्त्य के लिए सदा सावधान न रहें। ५. आचार्य और उपाध्याय गण को पूछे बिना अन्यत्र विहार करें, उसे पूछ कर विहार न करें। ६. आचार्य और उपाध्याय गण के लिए अनुपलब्ध उपकरणों को सम्यक् प्रकार से उपलब्ध न करें। ७. आचार्य और उपाध्याय गण में पूर्व-उपलब्ध उपकरणों का सम्यक् प्रकार से संरक्षण एवं संगोपन न करें (७)। प्रतिमा-सूत्र ८-सत्त पिंडेसणाओ पण्णत्ताओ। पिण्ड-एषणाएं सात कही गई हैं। विवेचन– आहार के अन्वेषण को पिण्ड-एषणा कहते हैं। वे सात प्रकार की होती हैं। उनका विवरण संस्कृत टीका के अनुसार इस पकार है १. संसृष्ट-पिण्ड-एषणा— देय वस्तु से लिप्त हाथ से, या कड़छी आदि से आहार लेना। २. असंसृष्ट-पिण्ड-एषणा- देय वस्तु से अलिप्त हाथ से, या कड़छी आदि से आहार लेना। ३. उद्धृत-पिण्ड-एषणा- पकाने के पात्र से निकाल कर परोसने के लिए रखे पात्र से आहार लेना। ४. अल्पलेपिक-पिण्ड-एषणा- रूक्ष आहार लेना। ५. अवगृहीत-पिण्ड-एषणा- खाने के लिए थाली में परोसा हुआ आहार लेना। ६. प्रगृहीत-पिण्ड-एषणा- परोसने के लिए कड़छी आदि से निकाला हुआ आहार लेना।। ७. उज्झितधर्मा-पिण्ड-एषणा— घरवालों के भोजन करने के बाद बचा हुआ एवं परित्याग करने के योग्य आहार लेना (८)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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