________________
षष्ठस्थान
५४३
छोटे-बड़े दो साधु गोचरी के लिए नगर में जा रहे थे। मार्ग में किसी मरे हुए मेंढक पर बड़े साधु का पैर पड़ गया। छोटे साधु ने आरोप लगाते हुए कहा आपने इस मेंढक को मार डाला। बड़े साधु ने कहा—नहीं, मैंने नहीं मारा है। तब छोटा साधु बोला—आप झूठ कहते हैं अत: आप मृषाभाषी भी हैं। इसी प्रकार दोषारोपण करते हुए वह गोचरी से लौट कर गुरु के समीप आता है । उसके इस प्रकार दोषारोपण करने पर उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है । यह पहला प्रायश्चित्त स्थान है ।
जब वह छोटा साधु गुरु से कहता है कि इन बडे साधु ने मेंढक को मारा है, तब उसे गुरु मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। यह दूसरा प्रायश्चित्त स्थान है। ___छोटे साधु के उक्त दोषारोपण करने पर गुरु ने बड़े साधु से पूछा- क्या तुमने मेंढक को मारा है वह कहता है—नहीं! तब आरोप लगाने वाले को चतुर्लघु प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। यह तीसरा प्रायश्चित्त स्थान है। .
छोटा साधु पुनः अपनी बात को दोहराता है और बडा साधु पुनः यही कहता है कि मैंने मेंढक को नहीं मारा है। तब उसे चतुर्गुरु प्रायश्चित्त प्राप्त होता है । यह चौथा प्रायश्चित्त स्थान है।
छोटा साधु गुरु से कहता है यदि आपको मेरे कथन पर विश्वास न हो तो आप गृहस्थों से पूछ लें। गुरु अन्य विश्वस्त साधुओं को भेजकर पूछताछ कराते हैं। तब उस छोटे साधु को षट् लघु प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। यह पाँचवां प्रायश्चित्त स्थान है।
उन भेजे गये साधुओं के पूछने पर गृहस्थ कहते हैं कि हमने उस साधु को मेंढक मारते नहीं देखा है, तब छोटे साधु को षड्गुरु प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। यह छठा प्रायश्चित्त स्थान है।
वे भेजे गये साधु वापस आकर गुरु से कहते हैं कि बडे साधु ने मेंढक को नहीं मारा है। तब उस छोटे साधु को छेद प्राचश्चित्त प्राप्त होता है। यह सातवाँ प्रायश्चित्त स्थान है।
फिर भी छोटा साधु कहता है—वे गृहस्थ सच या झूठ बोलते हैं, इसका क्या विश्वास है। ऐसा कहने पर वह मूल प्रायश्चित्त का भागी होता है। यह आठवाँ प्रायश्चित्त स्थान है।
फिर भी वह छोटा साधु कहे ये साधु और गृहस्थ मिले हुए हैं, मैं अकेला रह गया हूं। ऐसा कहने पर वह अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त का भागी होता है। यह नौवां प्रायश्चित्त है।
इतने पर भी यह छोटा साधु अपनी बात को पकड़े हुए कहे—आप सब जिन-शासन से बाहर हो, सब मिले हुए हो तब वह पारांचिक प्रायश्चित्त को प्राप्त होता है। यह दशवाँ प्रायश्चित्त स्थान है।
इस प्रकार वह ज्यों-ज्यों अपने झूठे दोषारोपण को सत्य सिद्ध करने का असत् प्रयास करता है, त्यों-त्यों उसका प्रायश्चित्त बढ़ता जाता है।
प्राणातिपात के दोषारोपण पर प्रायश्चित्त-वृद्धि का जो क्रम है वही मृषावाद, अदत्तादान आदि के दोषारोपण पर भी जानना चाहिए। पलिमन्थु-सूत्र
१०२- छ कप्पस्स पलिमंथू पण्णत्ता, तं जहा—कोकुइते संजमस्स पलिमंथू, मोहरिए सच्च-वयणस्स पलिमंथू, चक्खूलोलुए ईरियावहियाए पलिमंथू, तितिणिए एसणागोयरस्स पलिमंथू, इच्छालोभिते मोत्तिमग्गस्स पलिमंथू, भिजाणिदाणकरणे मोक्खमग्गस्स पलिमंथू, सव्वत्थ भगवता