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________________ षष्ठ स्थान ५. कीलिकासंहनन- - जिस शरीर की हड्डियां केवल कीलिका से कीलित हों । ६. सेवार्तसंहनन — जिस शरीर की हड्डियां परस्पर मिली हों (३०) । संस्थान - सूत्र ३१ हुंडे | ५२५ छव्विहे संठाणे पण्णत्ते, तं जहा समचउरंसे, णग्गोहपरिमंडले, साई, खुज्जे, वामणे, संस्थान छह प्रकार का कहा गया है, जैसे— १. समचतुरस्रसंस्थान — जिस शरीर के सभी अंग अपने-अपने प्रमाण के अनुसार हों और दोनों हाथों तथ दोनों पैरों के कोण पद्मासन से बैठने पर समान हों । २. न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान— न्यग्रोध का अर्थ वट वृक्ष है। जिस शरीर में नाभि से नीचे के अंग छोटे और ऊपर के अंग दीर्घ या विशाल हों । ३. सादिसंस्थान — जिस शरीर में नाभि के नीचे के भाग प्रमाणोपेत और ऊपर के भाग ह्रस्व हों। ४. कुब्जसंस्थान — जिस शरीर में पीठ या छाती पर कूबड़ निकली हो । ५. वामनसंस्थान जिस शरीर में हाथ, पैर, शिर और ग्रीवा प्रमाणोपेत हों, किन्तु शेष अवयव प्रमाणोपेत न हों, किन्तु शरीर बौना हो । ६. हुण्डकसंस्थान — जिस शरीर में कोई अवयव प्रमाणयुक्त न हो (३१) । विवेचन — दि० शास्त्रों में संहनन और संस्थान के भेदों के स्वरूप में कुछ भिन्नता है, जिसे तत्त्वार्थराजवार्तिक के आठवें अध्याय से जानना चाहिए। अनात्मवत्-आत्मवत्-सूत्र ३२ छट्टाणा अणत्तवओ अहिताए असुभाए अखमाए अणीसेसाए अणाणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा—परियार, परियाले, सुते, तवे, लाभे, पूयासक्कारे । अनात्मवान् के लिए छह स्थान अहित, अशुभ, अक्षम, अनिःश्रेयस्, अनानुगामिकता ( अशुभानुबन्ध) के लिए होते हैं, जैसे— १. पर्याय—–— अवस्था या दीक्षा में बड़ा होना, २. परिवार, ३ . श्रुत, ४ . तप, ५. लाभ, ६. पूजा-सत्कार (३२) । ३३ छट्ठाणा अत्तवतो हिताए ( सुभाए खमाए णीसेसाए) आणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा—परियार, परियाले, (सुते, तवे, लाभे, ) पूयासक्कारे । आत्मवान् के लिए छह स्थान हिंत, शुभ, क्षम, निःश्रेयस् और आनुगामिकता (शुभानुबन्ध) के लिए होते हैं, जैसे १. पर्याय, २. परिवार, ३ . श्रुत, ४. तप, ५. लाभ, ६. पूजा - सत्कार (३३) । विवेचन- जिस व्यक्ति को अपनी आत्मा का भान हो गया है और जिसका अहंकार-ममकार दूर हो गया है, वह आत्मवान् है । इसके विपरीत जिसे अपनी आत्मा का भान नहीं हुआ है और जो अहंकार-ममकार से ग्रस्त .
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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