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स्थानाङ्गसूत्रम्
जीव-सूत्र
६— छज्जीवणिकाया पण्णत्ता, तं जहा पुढविकाइया, (आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया), तसकाइया ।
छह जीवनिकाय कहे गये हैं, जैसे—
१. पृथ्वीकायिक, २. अप्कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक,
६. सकायिक (६) ।
७—– छ ताराग्गहा पण्णत्ता, तं जहा सुक्के, बुहे, बहस्सती, अंगारए, सणिच्छरे, केतू ।
छह ताराग्रह (तारों के आकार वाले ग्रह) कहे गये हैं, जैसे
१. शुक्र, २. बुध, ३. बृहस्पति, ४. अंगारक (मंगल), ५. शनिश्चर, ६. केतु (७)।
८- छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तेउकाड्या, वाउकाइया, वणस्सइकाइया), तसकाइया । संसार-समापन्नक जीव छह प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. पृथ्वीकायिक, २. अप्कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक,
६. सकायिक (८) ।
त-सूत्र
गति - आगति
तं जहा - पुढविकाइया, (आउकाइया,
९- - पुढविकाइया छगतिया छआगतिया पण्णत्ता, तं जहा —— पुढविकाइए, पुढविकाइएस उववज्जमाणे पुढविकाइएहिंतो वा, ( आउकाइएहिंतो वा, तेउकाइएहिंतो वा, वाउकाइएहिंतो वा, वणस्सइकाइएहिंतो वा ), तसकाइएहिंतो वा उववज्जेज्जा ।
से चेवणं से पुढविकाइए गुढविकाइयत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए वा, (आउकाइयत्ताए वा, तेउकाइयत्ताए वा, वाउकाइयत्ताए वा, वणस्सइकाइयत्ताए वा ) तसकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा ।
पृथिवीकायिक जीव षड्-ग -गतिक और षड्- -आगतिक कहे गये हैं, जैसे—
१. पृथिवीकायिक जीव पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता हुआ पृथिवीकायिकों से, या अप्कायिकों से, या तेजस्कायिकों से, या वायुकायिकों से, या वनस्पतिकायिकों से, या त्रसकायिकों से आकर उत्पन्न होता है।
वही पृथिवीकायिक जीव पृथिवीकायिक पर्याय को छोड़ता हुआ पृथिवीकायिकों में, या अप्कायिकों में, या तेजस्कायिकों में, या वायुकायिकों में, या वनस्पतिकायिकों में, या त्रसकायिकों में जाकर उत्पन्न होता है (९)
१० – आउकाइया छगतिया एवं छआगतिया चेव जाव तसकाइया ।
इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक जीव छह स्थानों में गति तथा छह स्थानों से आगति करने वाले कहे गये हैं (१०) ।