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________________ ५१६ स्थानाङ्गसूत्रम् ३. यक्षाविष्ट हो जाने पर, ४. उन्माद को प्राप्त हो जाने पर, ५. उपसर्ग प्राप्त हो जाने पर, ६. कलह को प्राप्त हो जाने पर (२)। साधर्मिक-अन्तकर्म-सूत्र ३. – छहिं ठाणेहिं णिग्गंथा णिग्गंथीओ य साहम्मियं कालगतं समायरमाणा णाइक्कमंति, तं जहा—अंतोहिंतो वा बाहिं णीणेमाणा, बाहीहिंतो वा णिब्बाहिं णीणेमाणा, उवेहेमाणा वा, उवासमाणा वा, अणुण्णवेमाणा वा, तुसिणीए वा संपव्वयमाणा। छह कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थी (साथ-साथ) अपने काल-प्राप्त साधर्मिक का अन्त्यकर्म करते हुए भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं, जैसे १. उसे उपाश्रय से बाहर लाते हुए। २. बस्ती से बाहर लाते हुए। ३. उपेक्षा करते हुए। ४. शव के समीप रह कर रात्रि-जागरण करते हुए। ५. उसके स्वजन या गृहस्थों को जताते हुए। ६. उसे एकान्त में विसर्जित करने के लिए मौन भाव से जाते हुए (३)। विवेचन— पूर्वकाल में जब साधु और साध्वियों के संघ विशाल होते थे और वे प्रायः नगर के बाहर रहते थे—उस समय किसी साधु या साध्वी के कालगत होने पर उसकी अन्तक्रिया उन्हें करनी पड़ती थी। उसी का निर्देश प्रस्तुत सूत्र में किया गया है। प्रथम दो कारणों से ज्ञात होता है कि जहाँ साधु या साध्वी कालगत हो, उस स्थान से बाहर निकालना और फिर उसे निर्दोष स्थण्डिल पर विसर्जित करने के लिए बस्ती से बाहर ले जाने का भी काम उनके साम्भोगिक साधु या साध्वी स्वयं ही करते थे। तीसरे उपेक्षा कारण का अर्थ विचारणीय है। टीकाकार ने इसके दो भेद किये हैं—व्यापारोपेक्षा और अव्यापारोपेक्षा । व्यापारोपेक्षा का अर्थ किया है मृतक के अंगच्छेदन-बंधनादि क्रियाओं को करना । तथा अव्यापारोपेक्षा का अर्थ किया है—मृतक के सम्बन्धियों द्वारा सत्कार-संस्कार में उदासीन रहना। बृहत्कल्प भाष्य और दि. ग्रन्थ माने जाने मूलाराधना के निर्हरण-प्रकरण से ज्ञात होता है कि यदि कोई आराधक रात्रि में कालगत हो जावे तो उसमें कोई भूत-प्रेत आदि प्रवेश न कर जावे, इसके लिए उसकी अंगुली के मध्य पर्व का भाग छेद दिया जाता था तथा हाथ-पैरों के अंगूठों को रस्सी से बांध दिया जाता था। अव्यापारोपेक्षा का जो अर्थ टीकाकार ने किया है, उससे ज्ञात होता है कि मृतक के सम्बन्धी आकर उसका मृत्यु महोत्सव किसी विधि-विशेष से मनाते रहे होंगे, उसमें साधु या साध्वी को उदासीन रहना चाहिए। चौथा कारण स्पष्ट है—यदि रात्रि में कोई आराधक कालगत हो और उसका तत्काल निर्हरण संभव न हो तो कालगत के साम्भोगिकों को उसके पास रात्रि-जागरण करते हुए रहना चाहिए। पाँचवें कारण से ज्ञात होता है कि यदि कालगत आराधक के सम्बन्धी जनों को मरण होने की सूचना देने के
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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