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________________ पंचम स्थान तृतीय उद्देश १. सुधर्मासभा, २. उपपातसभा, ३. अभिषेकसभा, ४. अलंकारिकसभा और ५. व्यवसायसभा (२३६)। नक्षत्र-सूत्र २३७– पंच णक्खत्ता पंचतारा पण्णत्ता, तं जहा धणिट्ठा, रोहिणी, पुणव्वसू, हत्थो, विसाहा। पांच नक्षत्र पांच-पांच तारावाले कहे गये हैं, जैसे १. धनिष्ठा, २. रोहिणी, ३. पुनर्वसु, ४. हस्त, ५. विशाखा (२३७)। पापकर्म-सूत्र २३८- जीवा णं पंचट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति, वा, तं जहा—एगिदियणिव्वत्तिए, (बेइंदियणिव्वत्तिए, तेइंदियणिव्वत्तिए, चउरिदियणिव्वत्तिए) पंचिंदियणिव्वत्तिए। एवं चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेद तह णिजरा चेव। जीवों ने पाँच स्थानों से निर्वर्तित पुद्गलों का पापकर्म के रूप से संचय भूतकाल में किया है, वर्तमान में कर रहे है और भविष्य में करेंगे, जैसे . १. एकेन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का, २. द्वीन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का, ३. त्रीन्द्रियनिवर्तित पुद्गलों का, ४. चतुरिन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का, ५. पंचेन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का (२३८)। इसी प्रकार पाँच स्थानों से निर्वर्तित पुद्गलों का पापकर्म रूप से उपचय, बन्ध, उदीरण, वेदन और निर्जरण भूतकाल में किया है, वर्तमान में कर रहे है और भविष्य में करेंगे। पुद्गल-सूत्र २३९- पंचपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता। पांच प्रदेश वाले पुदगलस्कन्ध अनन्त कहे गये हैं (२३९)। २४०- पंचपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव पंचगुणलुक्खा पोग्क्गला अणंता पण्णत्ता। (आकाश के) पाँच प्रदेशो में अवगाढ पुद्गलस्कन्ध अनन्त कहे गये हैं। पांच समय की स्थिति वाले पुद्गल-स्कन्ध अनन्त कहे गय हैं। पाँच गुणवाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त कहे गये हैं। इसी प्रकार शेष वर्ण तथा सभी रस, गन्ध और स्पर्श वाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त कहे गये हैं। ॥ तृतीय उद्देश समाप्त ॥ ॥पंचम स्थान समाप्त॥
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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