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तं जहा— सतद्दू, वितत्था, विपासा, एरावती, चंद्रभागा ।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दरपर्वत के दक्षिण भाग में (भरत क्षेत्र में ) पांच महानदियाँ सिन्धु महानदी को समर्पित होती हैं (उसमें मिलती हैं), जैसे—
स्थानाङ्गसूत्रम्
१. शतुद्रु (सतलज), २. वितस्ता (झेलम), ३. विपास (व्यास), ४. ऐरावती (रावी), ५. चन्द्रभागा (चिनाव ) (२३१) ।
तं
२३२ – जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रत्तं महाणदिं पंच महाणदीओ समप्पेंति, जहा कहा, महाकिण्हा, णीला, महाणीला, महातीरा ।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर भाग में (ऐरवत क्षेत्र में) पांच महानदियाँ रक्ता महानदी में समर्पित होती हैं (उसमें मिलती हैं), जैसे—
१. कृष्णा, २. महाकृष्णा, ३. नीला, ४. महानीला, ५. महातीरा ( २३२ ) ।
२३३
- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रत्तावतिं महाणदिं पंच महाणदीओ समप्पेंति, तं जहा इंदा, इंदसेणा, सुसेणा वारिसेणा, महाभोगा ।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर भाग में (ऐरवत क्षेत्र में ) पांच महानदियाँ रक्तावती महानदी को समर्पित होती हैं (उसमें मिलती हैं), जैसे
१. इन्द्रा, २. इन्द्रसेना, ३ . सुषेणा, ४. वारिषेणा, ५. महाभोगा (२३३) ।
तीर्थंकर - सूत्र
२३४— पंच तित्थगरा कुमारवासमझे वसित्ता मुंडा (भवित्ता अगाराओ अणगारियं) पव्वइया, तं जहा वासुपुजे, मल्ली, अरिट्ठणेमी, पासे, वीरे ।
, जैसे
पाँच तीर्थंकर कुमार वास में रहकर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए, १. वासुपूज्य, २. मल्ली, ३. अरिष्टनेमि, ४. पार्श्व और ५. महावीर (२३४) ।
सभा-सूत्र
२३५ – चमरचंचाए रायहाणीए पंच सभा पण्णत्ता, तं जहा— सभासुधम्मा उववातसभा, अभिसेयसभा, अलंकारियसभा, ववसायसभा ।
अमरचंचा राजधानी में पांच सभाएं कही गई हैं, जैसे
१. सुधर्मासभा (शयनागार), २. उपपातसभा (उत्पत्ति स्थान), ३. अभिषेकसभा (राज्याभिषेक का स्थान ), ४. अलंकारिकसभा (शरीर-सज्जा भवन), ५. व्यवसायसभा ( अध्ययन या तत्त्वनिर्णय का स्थान ) (२३५) ।
२३६ – एगमेगे णं इंदट्ठाणे पंच सभाओ पण्णत्ताओ, तं जहा— सभासुहम्मा, (उववातसभा, अभिसेयसभा, अलंकारियसभा), ववसायसभा ।
इसी प्रकार एक-एक इन्द्रस्थान में पांच-पांच सभाएं कही गई हैं, जैसे—