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________________ पंचम स्थान — तृतीय उद्देश १. एकेन्द्रिय, २ . द्वीन्द्रिय, ३. त्रीन्द्रिय, ४. चतुरिन्द्रिय, ५. पंचेन्द्रिय (१८० ) । १८१ - पंचविहा बायरतेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा बादर - तेजस्कायिक जीव पाँच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. अंगार - धधकता हुआ अग्निपिण्ड । २. ज्वाला— जलती हुई अग्नि की मूल से छिन्न शिखा । ३. मुर्मुर — भस्म - मिश्रित अग्निकण । ४. अर्चि जलते काष्ठ आदि से अच्छिन्न ज्वाला । ५. अलात - जलता हुआ काष्ठ (१८१) । १८२ - पंचविधा बादरवाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा— पाईणवाते, पडीणवाते, दाहिणवाते, उदीणवाते, विदिसवाते । बादर-वायुकायिक जीव पाँच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. प्राचीनवात — पूर्वदिशा का पवन । २. प्रतीचीन वात— पश्चिम दिशा का पवन । ३. दक्षिणवात — दक्षिण दिशा का पवन । है ४. उत्तरवात— उत्तरदिशा का पवन । ५. विदिग्वात— विदिशाओं के ईशान, नैर्ऋत, आग्नेय, वायव्य, ऊर्ध्व और अधोदिशाओं के वायु (१८२) । १. ४९५ अचित्त-वायुकाय - सूत्र १८३ – पंचविधा अचित्ता वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा— अक्कंते, धंते, पीलिए, सरीराणुगते, संमुच्छि मे । इंगाले, जाले, मुम्मुरे, अच्ची, अलाते। एते च पूर्वमचेतनास्ततः सचेतना अपि भवन्तीति । अचित्त वायुकाय पाँच प्रकार का कहा गया है, जैसे १. आक्रान्तवात — जोर-जोर से भूमि पर पैर पटकने से उत्पन्न वायु । २. ध्यातवात — धौंकनी आदि के द्वारा धौंकने से उत्पन्न वायु । ३. पीड़ितवात — गीले वस्त्रादि के निचोड़ने आदि से उत्पन्न वायु । ४. शरीरानुगतवात — शरीर से उच्छ्वास, अपान और उद्गारादि से निकलने वाली वायु । ५. सम्मूर्च्छिमवात — पंखे के चलने - चलाने से उत्पन्न वायु (१८३)। विवेचन — सूत्रोक्त पाँचों प्रकार की वायु उत्पत्तिकाल में अचेतन होती है, किन्तु पीछे सचेतन भी हो सकती (स्थानाङ्गसूत्रटीका, पत्र ३१९ ए)
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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