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स्थानाङ्गसूत्रम्
१. चित्रा नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये। इत्यादि (९५)। पार्श्व तीर्थंकर के पांच कल्याणक विशाखा नक्षत्र में हुए, जैसे१. विशाखा नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये। इत्यादि (९६)।
९७– समणे भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे होत्था, तं जहा—१. हत्थुत्तराहिं चुते चइत्ता गब्भं वक्कंते। २. हत्थुत्तराहिं गब्भाओ गब्भं साहरिते। ३. हत्थुत्तराहिं जाते। ४. हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता जाव (अगाराओ अणगारितं) पव्वइए। ५. हत्थुत्तराहिं अणंते अणुत्तरे जाव (णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे) केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे।
श्रमण भगवान् महावीर के पंच कल्याणक हस्तोत्तर (उत्तरा फाल्गुनी) नक्षत्र में हुए, जैसे१. हस्तोत्तर नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये। २. हस्तोत्तर नक्षत्र में देवानन्दा के गर्भ से त्रिशला के गर्भ में संहृत हुए। ३. हस्तोत्तर नक्षत्र में जन्म लिया। ४. हस्तोत्तर नक्षत्र में अगार से अनगारिता में प्रवजित हुए।
५. हस्तोत्तर नक्षत्र में अनन्त, अनुत्तर, निर्व्याघात, निरावरण, सम्पूर्ण, परिपूर्ण केवल वर ज्ञान-दर्शन समुत्पन्न हुए।
विवेचन-जिनसे त्रिलोकवर्ती जीवों का कल्याण हो, उन्हें कल्याणक कहते हैं। तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, निष्क्रमण (प्रव्रज्या), केवलज्ञानप्राप्ति और निर्वाण-प्राप्ति ये पांचों ही अवसर जीवों को सुख-दायक हैं। यहाँ तक कि नरक के नारक जीवों को भी उक्त पांचों कल्याणकों के समय कुछ समय के लिए सुख की लहर प्राप्त हो जाती है। इसलिए तीर्थंकरों के गर्भ-जन्मादि को कल्याणक कहा जाता है। (भगवान् महावीर का निर्वाण स्वाति नक्षत्र में हुआ था)।
॥ पंचम स्थान का प्रथम उद्देश समाप्त ॥