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________________ [५० ] संशोधन किया। उनके लिये भी वृत्तिकार ने उनका हृदय से आभार व्यक्त किया । वृत्ति का ग्रन्थमान चौदह हजार दौ सौ पचास श्लोक है। प्रस्तुत वृत्ति सन् १८८० में राय धनपतसिंह द्वारा कलकत्ता से प्रकाशित हुई । सन् १९१८ और १९२० में आगमोदय समिति बम्बई से, १९३७ में माणकलाल चुन्नीलाल अहमदाबाद से और गुजराती अनुवाद के साथ मुन्द्रा (कच्छ) से प्रकाशित हुईं। केवल गुजराती अनुवाद के साथ सन् १९३१ में जीवराज धोलाभाई डोसी ने अहमदाबाद से, सन् १९५५ में पं. दलसुख भाई मालवणिया ने गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद से स्थानांग समवायांग के साथ में रूपान्तर प्रकाशित किया है । जहाँ-तहाँ तुलनात्मक टिप्पण देने से यह ग्रन्थ अतीव महत्त्वपूर्ण बन गया है। संस्कृतभाषा में संवत् १६५७ में नगर्षिगणी तथा पार्श्वचन्द्र वसुमति कल्लोल और संवत् १७०५ में हर्षनन्दन ने भी स्थानांग पर वृत्ति लिखी है तथा पूज्य घासीलाल जी म. ने अपने ढंग से उस पर वृत्ति लिखी है। वीर संवत् २४४६ में हैदराबाद से सर्वप्रथम हिन्दी अनुवाद के साथ आचार्य अमोलकऋषि जी म. ने सरल संस्करण प्रकाशित करवाया। सन् १९७२ में मुनि श्री कन्हैयालाल जी 'कमल' ने आगम अनुयोग प्रकाशन, साण्डेराव से स्थानांग का एक शानदार संस्करण प्रकाशित करवाया है, जिसमें अनेक परिशिष्ट भी हैं। आचार्यसम्राट आत्मारामजी म. ने हिन्दी में विस्तृत व्याख्या लिखी । वह आत्माराम - प्रकाशन समिति, लुधियाना से प्रकाशित हुई। वि.सं. २०३३ में मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद तथा टिप्पणी के साथ जैन विश्वभारती से इसका एक प्रशस्त संस्करण भी प्रकाशित हुआ है। इसके अतिरिक्त अनेक संस्करण मूल रूप से भी प्रकाशित हुए हैं। स्थानकवासी परम्परा के आचार्य धर्मसिंहमुनि ने अट्ठारहवीं शताब्दी में स्थानांग पर टब्बा (टिप्पण) लिखा था। पर अभी तक वह प्रकाशित नहीं हुआ है। प्रस्तुत संस्करण समय-समय पर युग के अनुरूप स्थानांग पर लिखा गया है और विभिन्न स्थानों से इस सम्बन्ध में प्रयास हुए। उसी प्रयास की लड़ी की कड़ी में प्रस्तुत प्रयास भी है। श्रमण-संघ के युवाचार्य मधुकर मुनिजी एक प्रकृष्ट प्रतिभा के धनी सन्तर हैं, मेरे सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी म. के निकटतम स्नेही, सहयोगी व सहपाठी हैं। उनकी वर्षों से यह चाह थी कि आगमों का शानदार संस्करण प्रकाशित हो, जिसमें शुद्ध मूलपाठ, हिन्दी अनुवाद और विशिष्ट स्थलों पर विवेचन हो । युवाचार्यश्री के कुशल निर्देशन में आगमों का सम्पादन और प्रकाशन कार्य प्रारम्भ हुआ और वह अत्यन्त द्रुतगति के साथ चल रहा है। प्रस्तुत आगम का अनुवाद और विवेचन दिगम्बरपरम्परा के मूर्धन्य मनीषी पं. हीरालालजी शास्त्री ने किया है। पण्डित हीरालालजी शास्त्री नींव की ईंट के रूप में रहकर दिगम्बर जैन साहित्य के पुनरुद्धार के लिए जीवन भर लगे रहे। प्रस्तु सम्पादन उन्होंने जीवन कीं सान्ध्य वेला में किया है। सम्पादन सम्पन्न होने पर उनका निधन भी हो गया। उनके अपूर्ण कार्य को सम्पादन - कला - मर्मज्ञ पण्डितप्रवर शोभाचन्द्रजी भारिल्ल ने बहुत ही श्रम के साथ सम्पन्न किया । यद्यपि सम्पादन में अधिक श्रम होता तो अधिक निखार आता । पण्डित भारिल्लजी की प्रतिभा का चमत्कार यत्र-तत्र निहारा जा सकता है। स्थानांग पर मैं बहुत ही विस्तार के साथ प्रस्तावना लिखना चाहता था । किन्तु मेरा स्वास्थ्य अस्वस्थ हो गया। इधर ग्रन्थ के विमोचन का समय भी निर्धारित हो गया। इसलिए संक्षेप में प्रस्तावना लिखने के लिए मुझे विवश होना पड़ा । तथापि बहुत कुछ लिख गया हूं और इतना लिखना आवश्यक भी था। मुझे आशा है कि यह संस्करण आगम अभ्यासी स्वाध्यायप्रेमी साधकों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा । आशा है कि अन्य आगमों की भांति यह आगम भी जन-जन के मन को लुभायेगा । श्रीमती वरजुवाई जसराज रांका स्थानकवासी जैन धर्मस्थानक राखी (राजस्थान) ज्ञानपंचमी २/११/१९८१ - - देवेन्द्रमुनि शास्त्री [ प्रथम संस्करण से ]
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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