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पंचम स्थान प्रथम उद्देश
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____७४- पंचहिं ठाणेहिं केवली उदिण्णे परिसहोवसग्गे सम्मं सहेजा जाव (खमेजा तितिक्खेजा) अहियासेज्जा, तं जहा
१. खित्तचित्ते खलु अयं पुरिसे। तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा तहेव जाव (अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिब्भंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिंदति वा) अवहरति वा।
२. दित्तचित्ते खलु अयं पुरिसे। तेण मे एस पुरिसे जाव (अक्कोसेति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिब्भंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिंदति वा) अवहरति वा।
३. जक्खाइटे खलु अयं पुरिसे। तेण मे एस पुरिसे जाव (अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिब्भंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिंदति वा) अवहरति वा।
४. ममं च णं तब्भववेयणिज्जे कम्मे उदिण्णे भवति। तेण मे एस पुरिसे जाव (अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिब्भंछेति वा बंधेति वा संभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिंदति वा) अवहरति वा।
५. ममं च णं सम्मं सहमाणं खममाणं तितिक्खमाणं अहियासेमाणं पासेत्ता बहवे अण्णे छउमत्था समणा णिग्गंथा उदिण्णे-उदिण्णे परीसहोवसग्गे एवं सम्मं सहिस्संति जाव (खमिस्स्संति तितिक्खस्संति) अहियासिस्संति। ___ इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं केवली उदिण्णे परीसहोवसग्गे सम्मं सहेजा जाव (खमेजा तितिक्खेज्जा) अहियासेज्जा।
पांच कारणों से केवली उदयागत परीषहों और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार अविचल भाव से सहते हैं, क्षान्ति रखते हैं, तितिक्षा रखते हैं, और उनसे प्रभावित नहीं होते हैं, जैसे
१. यह पुरुष निश्चय से विक्षिप्तचित्त है—शोक आदि से बेभान है, इसलिए यह मुझ पर आक्रोश करता है, मुझे गाली देता है या मेरा उपहास करता है, या मुझे बाहर निकालने की धमकी देता है या मेरी निर्भर्त्सना करता है या मुझे बांधता है या रोकता है या छविच्छेद करता है या वधस्थान में ले जाता है या उपद्रुत करता है, वस्त्र या पात्र या कम्बल या पादपोंछन का छेदन करता है या विच्छेदन करता है या भेदन करता है, या अपहरण करता है।
२. यह पुरुष निश्चय से दृप्तचित्त (उन्माद-युक्त) है, इसलिए यह मुझ पर आक्रोश करता है, मुझे गाली देता है या मेरा उपहास करता है या मुझे बाहर निकालने की धमकी देता है या मेरी निर्भर्त्सना करता है या मुझे बांधता है या रोकता है या छविच्छेदन करता है या वधस्थान में ले जाता है या उपद्रुत करता है, वस्त्र या पात्र या कम्बल या पादपोंछन का छेदन करता है या भेदन करता है या अपहरण करता है।