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________________ ४५६ स्थानाङ्गसूत्रम् ३. ममं च णं तब्भववेयणिजे कम्मे उदिण्णे भवति। तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा तहेव जाव अवहरति (अवहसति वा णिच्छोडति वा णिब्भंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिंदति वा) अवहरति वा। ____४. ममं च णं सम्ममसहमाणस्स अखममाणस्स अतितिक्खमाणस्स अणधियासमाणस्स किं मण्णे कजति ? एगंतसो मे पावे कम्मे कज्जति। ५. ममं च णं सम्म सहमाणस्स जाव (खममाणस्स तितिक्खमाणस्स) अहियासेमाणस्स किं मण्णे कजति? एगंतसो मे णिजरा कजति। इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं छउमत्थे उदिण्णे परिसहोवसग्गे सम्मं सहेजा जाव (खमेजा तितिक्खेजा) अहियासेजा। ___पांच कारणों से छद्मस्थ पुरुष उदीर्ण (उदय या उदीरणा को प्राप्त) परीषहों और उपसर्गों को सम्यक्अविचल भाव से सहता है, क्षान्ति रखता है, तितिक्षा रखता है और उनसे प्रभावित नहीं होता है। जैसे— १. यह पुरुष निश्चय से उदीर्णकर्म है, इसलिए यह उन्मत्तक (पागल) जैसा हो रहा है। और इसी कारण यह मुझ पर आक्रोश करता है या मुझे गाली देता है, या मेरा उपहास करता है, या मुझे बाहर निकालने की धमकी देता है, या मेरी निर्भर्त्सना करता है, या मुझे बांधता है, या रोकता है, या छविच्छेद (अंग का छेदन) करता है, या पमार (मूर्च्छित) करता है, या उपद्रुत करता है, वस्त्र या पात्र या कम्बल या पादपोंछन का छेदन करता है, या विच्छेदन करता है, या भेदन करता है, या अपहरण करता है। २. यह पुरुष निश्चय से यक्षाविष्ट (भूत-प्रेतादि से प्रेरित) है, इसलिए यह मुझ पर आक्रोश करता है, या मुझे गाली देता है, या मेरा उपहास करता है, या मुझे बाहर निकालने की धमकी देता है, या मेरी निर्भर्त्सना करता है, या मुझे बांधता है, या रोकता है, या छविच्छेद करता है, या मूर्च्छित करता है, या उपद्रुत करता है, वस्त्र या पात्र या कम्बल या पादप्रोंछन का छेदन करता है, या विच्छेदन करता है, या भेदन करता है, या अपहरण करता है। ३. मेरे इस भव में वेदन करने के योग्य कर्म उदय में आ रहा है, इसलिए यह पुरुष मुझ पर आक्रोश करता है, मुझे गाली देता है, या मेरा उपहास करता है, या मुझे बाहर निकालने की धमकी देता है, या मेरी निर्भर्त्सना करता है, या बांधता है, या रोकता है, या छविच्छेद करता है, या मूर्छित करता है, या उपद्रुत करता है, वस्त्र या पात्र या कम्बल, या पादपोंछन का छेदन करता है, या विच्छेदन करता है, या भेदन करता है, या अपहरण करता है। ४. यदि मैं इन्हें सम्यक् प्रकार अविचल भाव से सहन नहीं करूंगा, क्षान्ति नहीं रखूगा, तितिक्षा नहीं रखेंगा और उनसे प्रभावित होऊंगा, तो मुझे क्या होगा ? मुझे एकान्त रूप से पापकर्म का संचय होगा। ५. यदि मैं इन्हें सम्यक् प्रकार अविचल भाव से सहन करूंगा, क्षान्ति रखूगा, तितिक्षा रखूगा, और उनसे प्रभावित नहीं होऊंगा, तो मुझे क्या होगा? एकान्त रूप से कर्म-निर्जरा होगी। इन पांच कारणों से छद्मस्थ पुरुष उदयागत परीषहों और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार अविचल भाव से सहता है, क्षान्ति रखता है, तितिक्षा रखता है और उनसे प्रभावित नहीं होता है।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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