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________________ ४४८ स्थानाङ्गसूत्रम् निषेध न करें, तो संघ में कलह उत्पन्न हो जाता है। इसी प्रकार यथारालिक साधुओं के विनय-वन्दनादि का संघस्थ साधुओं को निर्देश करना भी उनका आवश्यक कर्तव्य है उसका उल्लंघन होने पर भी कलह हो सकता है। कलह का तीसरा कारण सूत्र-पर्यवजातों की यथाकाल वाचना न देने का है। आगम-सूत्रों की वाचना देने का यह क्रम है—तीन वर्ष की दीक्षा-पर्याय वाले को आचार-प्रकल्प की, चार वर्ष के दीक्षित को सूत्रकृत की, पांच वर्ष के दीक्षित को दशाश्रुतस्कन्ध, वृहत्कल्प और व्यवहारसूत्र की, आठ वर्ष के दीक्षित को स्थानाङ्ग और समवायाङ्ग की, दश वर्ष के दीक्षित को व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) सूत्र की, ग्यारह वर्ष के दीक्षित को क्षुल्लकविमानप्रविभक्ति आदि पांच अध्ययनों की, बारह वर्ष के दीक्षित को अरुणोपपात आदि पांच अध्ययनों की, तेरह वर्ष के दीक्षित को उत्थानश्रुत आदि चार अध्ययनों की, चौदह वर्ष के दीक्षित को आशीविष-भावना की, पन्द्रह वर्ष के दीक्षित को दृष्टिविषभावना की, सोलह वर्ष के दीक्षित को चारण-भावना की, सत्रह वर्ष के दीक्षित को महास्वप्न भावना की, अट्ठारह वर्ष के दीक्षित को तेजोनिसर्ग की, उन्नीस वर्ष के दीक्षित को बारहवें दृष्टिवाद अंग की और बीस वर्ष के दीक्षित को सर्वाक्षरसंनिपाती श्रुत की वाचना देने का विधान है। जो आचार्य या उपाध्याय जितने भी श्रुत का पाठी है, उसकी दीक्षापर्याय के अनुसार अपने शिष्यों को यथाकाल वाचना देनी चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करता है, या व्युत्क्रम से वाचना देता है तो उसके ऊपर पक्षपात का दोषारोपण कर कलह हो सकता है। कलह का चौथा कारण ग्लान और शैक्ष की यथोचित वैयावृत्त्य की सुव्यवस्था न करना है। इससे संघ में अव्यवस्था होती है और पक्षपात का दोषारोपण भी सम्भव है। पांचवाँ कारण साधु-संघ से पूछे बिना अन्यत्र चले जाना आदि है। इससे भी संघ में कलह हो सकता है। अतः आचार्य और उपाध्याय को इन पांच कारणों के प्रति सदा जागरूक रहना चाहिए। अव्युद्ग्रहस्थान-सूत्र ४९- आयरियउवज्झायस्स णं गणंसि पंचावुग्गहट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा१. आयरियउवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा सम्मं पउंजित्ता भवति। २. एवमाधारातिणिताए (आयरियउवज्झाए णं गणंसि) आधारातिणिताए सम्मं किइकम्मं पउंजित्ता भवति। ३. आयरियउवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपजवजाते धारेति ते काले-काले सम्म अणुपवाइत्ता भवति। ४. आयरियउवज्झाए गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं सम्मं अब्भुट्ठित्ता भवति। ५. आयरियउवज्झाए गणंसि आपुच्छियचारी यावि भवति, णो अणापुच्छियचारी। आचार्य और उपाध्याय के लिए गण में पांच अव्युद्-ग्रहस्थान (कलह न होने के कारण) कहे गये हैं, जैसे १. आचार्य और उपाध्याय गण में आज्ञा तथा धारणा का सम्यक् प्रयोग करें। २. आचार्य और उपाध्याय गण में यथारानिक कृतिकर्म का प्रयोग करें। ३. आचार्य और उपाध्याय जिन-जिन सूत्र-पर्यवजातों को धारण करते हैं, उनकी यथासमय गण को सम्यक् वाचना दें।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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