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पंचम स्थान–प्रथम उद्देश
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५- पंच कामगुणा पण्णत्ता, तं जहा सद्दा, रूवा, गंधा, रसा, फासा। कामगुण पांच कहे गये हैं, जैसे१. शब्द, २. रूप, ३. गन्ध, ४. रस, ५. स्पर्श (५)। ६- पंचहिं ठाणेहिं जीवा सजंति, तं जहा सद्देहिं, रूवेहि, गंधेहिं, रसेहिं, फासेहिं। पांच स्थानों में जीव आसक्त होते हैं, जैसे१. शब्दों में, २. रूपों में, ३. गन्धों में, ४. रसों में, ५. स्पर्शों में (६)।
७- एवं रज्जति मुच्छंति गिझंति अज्झोववजंति। (पंचहिं ठाणेहिं जीवा रजंति, तं जहा—सद्देहि, जाव (रूवेहिं, गंधेहिं, रसेहिं) फासेहिं। ८- पंचहिं ठाणेहिं जीवा मुच्छंति, तं जहा—सद्देहिं, रूवेहिं, गंधेहिं, रसेहिं, फासेहिं। ९- पंचहिं ठाणेहिं जीवा गिझंति, तं जहा—सद्देहिं, रूवेहिं, गंधेहिं, रसेहिं, फासेहि। १०– पंचहि ठाणेहिं जीवा अज्झोववजंति, तं जहा—सद्देहिं, रूवेहि, गंधेहिं, रसेहिं, फासेहि।
पांच स्थानों में जीव अनुरक्त होते हैं, जैसे१. शब्दों में, २. रूपों में, ३. गन्धों में, ४. रसों में, ५. स्पर्शों में (७)। पांच स्थानों में जीव मूर्च्छित होते हैं, जैसे- . १. शब्दों में, २. रूपों में, ३. गन्धों में, ४. रसों में, ५. स्पर्शों में (८)। पांच स्थानों में जीव गृद्ध होते हैं, जैसे१. शब्दों में, २. रूपों में, ३. गन्धों में, ४. रसों में, ५. स्पर्शों में (९)। पांच स्थानों में जीव अध्युपपन्न (अत्यासक्त) होते हैं, जैसे१. शब्दों में, २. रूपों में, ३. गन्धों में, ४. रसों में, ५. स्पर्शों में (१०)।
११- पंचहिं ठाणेहिं जीवा विणिघायमावजंति, तं जहा सद्देहि, जाव (रूवेहिं, गंधेहिं, रसेहिं), फासेहिं।
पांच स्थानों से जीव विनिघात (विनाश) को प्राप्त होते हैं, जैसे
१.शब्दों से, २. रूपों से, ३. गन्धों से, ४. रसों से, ५. स्पर्शों से, अर्थात् इनकी अतिलोलुपता के कारण जीव विघात को प्राप्त होते हैं (११)।
१२– पंच ठाणा अपरिण्णाता जीवाणं अहिताए असुभाए अखमाए अणिस्सेस्साए अणाणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा सहा जाव (रूवा, गंधा, रसा), फासा।
अपरिज्ञात (अज्ञात और अप्रत्याख्यात) पांच स्थान जीवों के अहित के लिए, अशुभ के लिए, अक्षमता (असामर्थ्य) के लिए, अनिःश्रेयस् (अकल्याण) के लिए और अननुगामिता (अमोक्ष-संसारवास) के लिए होते हैं, जैसे
१. शब्द, २. रूप, ३. गन्ध, ४. रस, ५. स्पर्श (१२)।