________________
पंचम स्थान प्रथम उद्देश
महाव्रत-अणुव्रत-सूत्र
१- पंच महव्वया पण्णत्ता, तं जहा—सव्वाओ पाणातिवायाओ वेरमणं जाव (सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं), सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं।
महाव्रत पांच कहे गये हैं, जैसे१. सर्व प्रकार के प्राणातिपात (जीव-घात) से विरमण। २. सर्व प्रकार के मृषावाद (असत्य-भाषण) से विरमण। ३. सर्व प्रकार के अदत्तादान (चोरी) से विरमण। ४. सर्व प्रकार के मैथुन (कुशील-सेवन) से विरमण। ५. सर्व प्रकार के परिग्रह से विरमण (१)।
२- पंचाणुव्वया पण्णत्ता, तं जहा थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छापरिमाणे।
अणुव्रत पांच कहे गये हैं, जैसे१. स्थूल प्राणातिपात (त्रस जीव-घात) से विरमण। २. स्थूल मृषावाद (धर्म-घातक, लोक विरुद्ध असत्य भाषण) से विरमण। ३. स्थूल अदत्तादान (राज-दण्ड, लोक दण्ड देने वाली चोरी) से विरमण। ४. स्वदारसन्तोष (पर-स्त्री सेवन से विरमण)।
५. इच्छापरिमाण (इच्छा—परिग्रह का विरमण) (२)। इन्द्रिय-विषय-सूत्र
३- पंच वण्णा पण्णत्ता, तं जहा—किण्हा, णीला, लोहिता, हालिद्दा, सुक्किल्ला। वर्ण पांच कहे गये हैं, जैसे१. कृष्ण वर्ण, २. नील वर्ण, ३. लोहित (लाल) वर्ण, ४. हरिद्र (पीला) वर्ण, ५. शुक्ल वर्ण (३)। ४- पंच रसा पण्णत्ता, तं जहा—तित्ता (कडुया, कसाया, अंबिला), मधुरा। रस पांच कहे गये हैं, जैसे१. तिक्त रस, २. कटु रस, ३. कषाय रस, ४. आम्ल रस, ५. मधुर रस (४)।