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________________ चतुर्थ स्थान चतुर्थ उद्देश ६५१ – उवरिल्ला चत्तारि कप्पा अद्धचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं जहा—आरणे, अच्चुते । उपरि चार कल्प अर्ध चन्द्र के आकर से स्थित कहे गये हैं, जैसे १. आनतकल्प, २. प्राणतकल्प, ३. आरणकल्प, ४. अच्युतकल्प (६५१) । ४२९ -आणते, पाणते, समुद्र - सूत्र ६५२ – चत्तारि समुद्दा पत्तेयरसा पण्णत्ता, तं जहा लवणोदे, वरुणोदे, खीरोदे, घतोदे । चार समुद्र प्रत्येक रस (भिन्न-भिन्न रस) वाले कहे गये हैं, जैसे— १. लवणोदक- - लवण - रस के समान खारे पानी वाला । २. वरुणोदक मदिरा - रस के समान पानी वाला । ३. क्षीरोदक — दुग्ध-रस के समान पानी वाला । ४. घृतोदक— घृत-रस के समान पानी वाला (६५२) । कषाय-सूत्र ६५३ – चत्तारि आवत्ता पण्णत्ता, तं जहा—खरावत्ते, उण्णतावत्ते, गूढावत्ते, आमिसावत्ते । एवामेव चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा — खरावत्तसमाणे कोहे, उण्णतावत्तसमाणे माणे, गूढावत्तसमाणा माया, आमिसावत्तसमाणे लोभे । १. खरावत्तसमाणं कोहं अणुपविट्ठे जीवे कालं करेति, णेरइएसु उववज्जति । २. ( उण्णतावत्तसमाणं माणं अणुपविट्टे जीवे कालं करेति, णेरइएसु उववज्जति । ३. गूढावत्तसमाणं मायं अणुपविट्ठे जीवे कालं करेति, णेरइएसु उववज्जति ) । ४. आमिसावत्तसमाणं लोभमणुपविट्ठे जीवे कालं करेति, णेरइएसु उववज्जति । चार आवर्त (गोलाकार घुमाव ) कहे गये हैं, जैसे १. खरावर्त—— अतिवेगवाली जल-तरंगों के मध्य होने वाली गोलाकार भंवर । २. उन्नतावर्त — पर्वत-शिखर पर चढ़ने का घुमावदार मार्ग, या वायु का गोलाकार बवंडर । ३. गूढावर्त - गेंद के समान सर्व ओर से गोलाकर आवर्त । ४. आमिषावर्तमांस के लिए गिद्ध आदि पक्षियों का चक्कर वाला परिभ्रमण (६५३) । इसी प्रकार कषाय भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. खरावर्त - समान — क्रोध कषाय । २. उन्नतावर्त - समान—मान कषाय । ३. गूढावर्त - समान — माया कषाय । ४. आमिषावर्त - समान — लोभ कषाय । खरावर्त - समान क्रोध में वर्तमान जीव काल करता है तो नारकों में उत्पन्न होता है । उन्नतावर्त - समान मान में वर्तमान जीव काल करता है तो नारकों में उत्पन्न होता है। गूढावर्त - समान माया में वर्तमान जीव काल करता है तो नारकों में उत्पन्न होता है। आमिषावर्त-समान लोभ में वर्तमान जीव काल करता है तो नारकों में उत्पन्न होता है।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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