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________________ स्थानाङ्गसूत्रम् ३. मारणान्तिक दशा में मरण के अन्तर्मुहूर्त पूर्व जीव के कुछ प्रदेश निकल कर जहां उत्पन्न होना है, वहां तक फैलते चले जाते हैं और उस स्थान का स्पर्श कर वापिस शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं। इसे मारणान्तिक समुद्घात कहते हैं। इसके कुछ क्षण के बाद जीव का मरण होता है । ४. वैक्रियसमुद्घात — शरीर के छोटे-बड़े आकारादि के बनाने को वैक्रिय समुद्घात कहते हैं । नारक जीवों के समान वायुकायिक जीवों के भी निमित्त विशेष से शरीर छोटे-बड़े रूप में संकुचित-विस्तृत होते रहते हैं अत: उनके वैक्रिय समुद्घात कहा गया हैं ( ६४६) । चतुर्दशपूर्वि - सूत्र ४२८ ६४७- अरहतो णं अरिट्ठणेमिस्स चत्तारि सया चोहसपुव्वीणमजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खरसण्णिवाईणं जिणो [ जिणाणं ? ] इव अवितथं वागरमाणाणं उक्कोसिया चउद्दसपुव्विसंपया हुत्था । अरहन्त अरिष्टनेमि के चतुर्दश- पूर्व- वेत्ता मुनियों की संख्या चार सौ थी। वे जिन नहीं होते हुए भी जिन के समान सर्वाक्षरसन्निपाती (सभी अक्षरों के संयोग से बने संयुक्त पदों के और उनसे निर्मित बीजाक्षरों के ज्ञाता ) थे, तथा जिनके समान ही अवितथ — ( यथार्थ - ) भाषी थे । यह अरिष्टनेमि के चौदह पूर्वियों की उत्कृष्ट सम्पदा थी (६४७)। वादि-सूत्र ६४८— समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वादीणं सदेवमणुयासुराए परिसाए अपराजियाणं उक्कोसिता वादिसंपया हुत्था । श्रमण भगवान् महावीर के वादी मुनियों की संख्या चार सौ थी। वे देव - परिषद्, मनुज-परिषद् और असुरपरिषद् में अपराजित थे। अर्थात् उन्हें कोई भी देव, मनुष्य या असुर जीत नहीं सकता था । यह उनके वादी - शिष्यों की उत्कृष्ट सम्पदा थी (६४८) । कल्पविमान-सूत्र ६४९ — हेठिल्ला चत्तारि कप्पा अद्धचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं जहा— सोहम्मे, ईसाणे, सणंकुमारे, माहिंदे। अधस्तन (नीचे के) चार कल्प अर्धचन्द्र आकार से स्थित हैं, जैसे— १. सौधर्मकल्प, २. ईशानकल्प, ३. सनत्कुमारकल्प, ४. माहेन्द्रकल्प (६४९) । ६५० - मज्झिल्ला चत्तारि कप्पा पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं जहा बंभलोगे, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे । मध्यवर्ती चार कल्प परिपूर्ण चन्द्र के आकर से स्थित कहे गये हैं, जैसे— १. ब्रह्मलोककल्प, २. लान्तककल्प, ३. महाशुक्रकल्प, ४. सहस्रारकल्प (६५०)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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