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चतुर्थ स्थान- चतुर्थ उद्देश
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३. कालवर्षी भी, अकालवर्षी भी— कोई पुरुष समय पर भी दानादि देता है और असमय में भी दानादि देता
४. न कालवर्षी, न अकालवर्षी— कोई पुरुष न समय पर ही दानादि देता है और न असमय में ही देता है (५३६)।
५३७– चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा खेत्तवासी णाममेगे णो अखेत्तवासी, अखेत्तवासी णाममेगे णो खेत्तवासी, एगे खेत्तवासीवि अखेत्तवासीवि, एगे णो खेत्तवासी णो अखेत्तवासी।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा खेत्तवासी णाममेगे णो अखेत्तवासी, अखेत्तवासी णाममेगे णो खेत्तवासी, एगे खेत्तवासीवि अखेत्तवासीवि, एगे णो खेत्तवासी णो अखेत्तवासी।
पुनः मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. क्षेत्रवर्षी, न अक्षेत्रवर्षी— कोई मेघ क्षेत्र (उर्वरा भूमि) पर बरसता है, अक्षेत्र (ऊसरभूमि) पर नहीं बरसता है।
२. अक्षेत्रवर्षी, न क्षेत्रवर्षी— कोई मेघ अक्षेत्र पर बरसता है, क्षेत्र पर नहीं बरसता है। ३. क्षेत्रवर्षी भी, अक्षेत्रवर्षी भी— कोई मेघ क्षेत्र पर भी बरसता है और अक्षेत्र पर भी बरसता है। ४. नं क्षेत्रवर्षी, न अक्षेत्रवर्षी— कोई मेघ न क्षेत्र पर बरसता है और न अक्षेत्र पर बरसता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. क्षेत्रवर्षी, न अक्षेत्रवर्षी— कोई पुरुष धर्मक्षेत्र (धर्मस्थान—दया और धर्म के पात्र) पर बरसता (दान देता है), अक्षेत्र (अधर्मस्थान) पर नहीं बरसता। -- २. अक्षेत्रवर्षी, न क्षेत्रवर्षी— कोई पुरुष अक्षेत्र पर बरसता है, क्षेत्र पर नहीं बरसता है।
३. क्षेत्रवर्षी भी, अक्षेत्रवर्षी भी- कोई पुरुष क्षेत्र पर भी बरसता है और अक्षेत्र पर भी बरसता है।
४. न क्षेत्रवर्षी, न अक्षेत्रवर्षी— कोई पुरुष न क्षेत्र पर बरसता है और न अक्षेत्र पर बरसता है (५३७)। अम्बा-पितृ-सूत्र
५३८– चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा जणइत्ता णाममेगे णो णिम्मवइत्ता, णिम्मवइत्ता णाममेगे णो जणइत्ता, एगे जणइत्तावि णिम्मवइत्तावि, एगे णो जणइत्ता णो णिम्मवइत्ता। ___ एवामेव चत्तारि अम्मापियरो पण्णत्ता, तं जहा जणइत्ता णाममेगे णो णिम्मवइत्ता, णिम्मवइत्ता णाममेगे णो जणइत्ता, एगे जणइत्तावि णिम्मवइत्तावि, एगे णो जणइत्ता णो णिम्मवइत्ता।
मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. जनक, न निर्मापक- कोई मेघ अन्न का जनक (उगाने वाला उत्पन्न करने वाला) होता है, निर्मापक (निर्माण कर फसल देने वाला) नहीं होता।
२. निर्मापक, न जनक— कोई मेघ अन्न का निर्मापक होता है, जनक नहीं होता। ३. जनक भी, निर्मापक भी- कोई मेघ अन्न का जनक भी होता है और निर्मापक भी होता है।