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________________ ३८६ ही है (५३४) । ५३५—– चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा—वासित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाम णो वासित्ता, एगे वासित्तावि विज्जुयाइत्तावि, एगे णो वासित्ता णो विज्जुयाइत्ता । स्थानाङ्गसूत्रम् एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—वासित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णामगे णो वासित्ता, एगे वासित्तावि विज्जुयाइत्तावि, एगे णो वासित्ता णो विज्जुयाइत्ता । मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— पुन: १. वर्षक, न विद्योतक— कोई मेघ बरसता है, किन्तु चमकता नहीं है । २. विद्योतक, न वर्षक— कोई मेघ चमकता है, किन्तु बरसता नहीं है । ३. वर्पक भी, विद्योतक भी कोई मेघ बरसता भी है और चमकता भी है । ४. न वर्षक, न विद्योतक— कोई मेघ न बरसता है और न चमकता ही है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. वर्षक, न विद्योतक कोई पुरुष दानादि देता तो है, किन्तु दिखावा कर चमकता नहीं है । २. विद्योतक, न वर्षक— कोई पुरुष दानादि देने का आडम्बर या प्रदर्शन कर चमकता तो है, किन्तु बरसता (देता) नहीं है। ३. वर्षक भी, विद्योतक भी—— कोई पुरुष दानादि की वर्षा भी करता है और उसका दिखावा कर चमकता भी है । ४. न वर्षक, न विद्योतक— कोई पुरुष न दानादि की वर्षा ही करता है और न देकर के चमकता ही है (५३५)। ५३६ - चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा कालवासी णाममेगे णो अकालवासी, अकालवासी rait कालवासी, एगे कालवासीवि अकालवासीवि, एगे णो कालवासी णो अकालवासी । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— कालवासी णाममेगे णो अकालवासी, अकालवासी णाममेगे णो कालवासी, एगे कालवासीवि अकालवासीवि, एगे णो कालवासी णो अकालवासी । पुनः मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. कालवर्षी, न अकालवर्षी— कोई मेघ समय पर बरसता है असमय में नहीं बरसता । २. अकालवर्षी, न कालवर्षी — कोई मेघ असमय में बरसता है, समय पर नहीं बरसता । ३. कालवर्षी भी, अकालवर्षी भी कोई मेघ समय पर भी बरसता है और असमय में भी बरसता है । ४. न कालवर्षी, न अकालवर्षी— कोई मेघ न समय पर ही बरसता है और न असमय में ही बरसता है । इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. कालवर्षी, न अकालवर्षी — कोई पुरुष समय पर दानादि देता है, असमय में नहीं देता । २. अकालवर्षी, न कालवर्षी— कोई पुरुष असमय में दानादि देता है, समय पर नहीं देता ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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