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चतुर्थ स्थान तृतीय उद्देश
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१. आहरण- सामान्य दृष्टान्त ।
२. आहरणतद्देश— एकदेशीय दृष्टान्त ।
३. आहरणतद्दोष साध्यविकल आदि दृष्टान्त |
४. उपन्यासोपनय—–— वादी के द्वारा किये गये उपन्यास के विघटन (खंडन) के लिए प्रतिवादी के द्वारा दिया
गया विरुद्धार्थक उपनय ( ४९९ ) ।
५०० आहरणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा— अवाए, उवाए, ठवणाकम्मे, पडुप्पण्णविणासी ।
आहरण रूप ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार का कहा गया है, जैसे—
१. अपाय - आहरण — हेयधर्म का ज्ञापक दृष्टान्त ।
२. उपाय-आहरण— उपादेय वस्तु का उपाय बताने वाला दृष्टान्त ।
३. स्थापनाकर्म- आहरण- अभीष्ट की स्थापना के लिए प्रयुक्त दृष्टान्त ।
४. प्रत्युत्पन्नविनाशी-आहरण — उत्पन्न दूषण का परिहार करने के लिए दिया जाने वाला दृष्टान्त (५००)। ५०१ - आहरणतद्देसे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा— अणुसिट्ठी, उवालंभे, पुच्छा, णिस्सावयणे । आहरण-तद्देश ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार का कहा गया है, जैसे—
१. अनुशिष्टि - आहरणतद्देश—— प्रतिवादी के मन्तव्य का अनुचित अंश स्वीकार कर अनुचित अंश का निराकरण करना ।
२. उपालम्भ-आहरण- तद्देश— दूसरे के मत को उसी की मान्यता से दूषित करना ।
३. पृच्छा-आहरण- तद्देश— प्रश्नों-प्रतिप्रश्नों के द्वारा पर- मत को असिद्ध करना ।
४. निःश्रावचन-आहारण - तद्देश— एक के माध्यम से दूसरे को शिक्षा देना (५०१) ।
५०२ - आहरणतद्दोसे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा— अधम्मजुत्ते, पडिलोमे, अत्तोवणीते, दुरुवणीते।
आहरण-तद्दोष ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार का कहा गया है,
१. अधर्म-युक्त- आहरण- तद्दोष — अधर्म बुद्धि को उत्पन्न करने वाला दृष्टान्त ।
२. प्रतिलोम-आहरण-तद्दोष – अपसिद्धान्त का प्रतिपादक दृष्टान्त, अथवा प्रतिकूल आचरण की शिक्षा देने वाला दृष्टान्त ।
३. आत्मोपनीत-आहरण- तद्दोष पर मत में दोष दिखाने के लिए प्रयुक्त किया गया, किन्तु स्वमत का दूषक दृष्टान्त ।
४. दुरुपनीत-आहरण-तद्दोष — दोष-युक्त निगमन वाला दृष्टान्त (५०२)।
५०३—– उवण्णासोवणए चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा— तव्वत्थुते, तदण्णवत्थुते, पडिणिभे,
हेतू ।
जैसे
उपन्यासोपनय-ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार का कहा गया है, जैसे—
१. तद्-वस्तुक उपन्यासोपनय— वादी के द्वारा उपन्यास किये गये हेतु से उसका ही निराकरण करना ।