SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 421
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५४ स्थानाङ्गसूत्रम ४५९– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–दुग्गए णाममेगे दुग्गतिं गते, दुग्गए णाममेगे सुग्गतिं गते। [सुग्गए णाममेगे दुग्गतिं गते, सुग्गए णाममेगे सुग्गतिं गते ] ४। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. दुर्गत और दुर्गति-गत—कोई पुरुष दुर्गत होकर दुर्गति को प्राप्त हुआ है। २. दुर्गत और सुगति-गत— कोई पुरुष दुर्गत होकर भी सुगति को प्राप्त हुआ है। ३. सुगत और दुर्गति-गत— कोई पुरुष सुगत होकर भी दुर्गति को प्राप्त हुआ है। ४. सुगत और सुगति-गत- कोई पुरुष सुगत होकर सुगति को ही प्राप्त हुआ है (४५९)। तमः-ज्योति-सूत्र ४६०– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा तमे णाममेगे तमे, तमे णाममेगे जोती, जोती णाममेगे तमे, जोती णाममेगे जोती। पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. तम और तम- कोई पुरुष पहले भी तम (अज्ञानी) होता है और पीछे भी तम (अज्ञानी) होता है। २. तम और ज्योति- कोई पुरुष पहले तम (अज्ञानी) होता है, किन्तु पीछे ज्योति (ज्ञानी) हो जाता है। ३. ज्योति और तम— कोई पुरुष पहले ज्योति (ज्ञानी) होता है, किन्तु पीछे तम (अज्ञानी) हो जाता है। ४. ज्योति और ज्योति— कोई पुरुष पहले भी ज्योति (ज्ञानी) होता है और पीछे भी ज्योति (ज्ञानी) ही रहता है (४६०)। ४६१- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—तमे णाममेगे तमबले, तमे णाममेगे जोतिबले, जोती णाममेगे तमबले, जोती णाममेगे जोतिबले। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. तम और तमोबल— कोई पुरुष तम (अज्ञानी और मलिन स्वभावी) होता है और तमोबल (अंधकार, अज्ञान और असदाचार ही उसका बल) होता है। २. तम और ज्योतिर्बल— कोई पुरुष तम (अज्ञानी) होता है, किन्तु ज्योतिर्बल (प्रकाश, ज्ञान और सदाचार ही उसका बल) होता है। ३. ज्योति और तमोबल— कोई पुरुष ज्योति (ज्ञानी) होकर भी तमोबल (असदाचार) वाला होता है। ४. ज्योति और ज्योतिर्बल— कोई पुरुष ज्योति (ज्ञानी) होकर ज्योतिर्बल (सदाचारी) होता है (४६१)। ४६२- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा तमे णाममेगे तमबलपलजणे, तमे णाममेगे जोतिबलपलज्जणे ४।[जोती णाममेगे तमबलपलज्जणे, जोती णाममेगे जोतिबलपलजणे]। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. तम और तमोबलप्ररंजन— कोई पुरुष तम और तमोबल में रति करने वाला होता है। २. तम और ज्योतिर्बलप्ररंजन– कोई पुरुष तम, किन्तु ज्योतिर्बल में रति करने वाला होता है। ३. ज्योति और तमोबलप्ररंजन— कोई पुरुष ज्योति, किन्तु तमोबल में रति करने वाला होता है।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy