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________________ चतुर्थ स्थान– तृतीय उद्देश ३५३ ४५६- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–दुग्गए णाममेगे दुव्वए, दुग्गए णाममेगे सुव्वए, सुग्गए णाममेगे दुव्वए, सुग्गए णाममेगे सुव्वए। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. दुर्गत और दुव्रत— कोई पुरुष दुर्गत और दुव्रत (खोटे व्रतवाला) होता है। २. दुर्गत और सुव्रत— कोई पुरुष दुर्गत होता है, किन्तु सुव्रत (उत्तम व्रतवाला) होता है। ३. सुगत और दुर्बत- कोई पुरुष सुगत, किन्तु दुव्रत होता है। ४. सुगत और सुव्रत- कोई पुरुष सुगत और सुव्रत होता है (४५६)। विवेचन-सूत्र-पठित 'दुव्वए' और 'सुव्वए' इन प्राकृत पदों का टीकाकार ने 'दुव्रत' और 'सुव्रत' संस्कृत रूप देने के अतिरिक्त 'दुर्व्यय' और 'सुव्यय' संस्कृत रूप भी दिये हैं । तदनुसार चारों भंगों का अर्थ इस प्रकार किया १. दुर्गत और दुर्व्यय- कोई पुरुष धन से दरिद्र होता है और प्राप्त धन का दुर्व्यय करता है, अर्थात् अनुचित व्यय करता है, अथवा आय से अधिक व्यय करता है। २. दुर्गत और सुव्य-कोई पुरुष दरिद्र होकर भी प्राप्त धन का सद्-व्यय करता है। ३. सुगत और दुर्व्यय- कोई पुरुष धन-सम्पन्न होकर धन का दुर्व्यय करता है। ४. सुगत और सुव्यय- कोई पुरुष धन-सम्पन्न होकर धन का सद्-व्यय करता है (४५६) । ४५७- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–दुग्गए णाममेगे दुप्पडिताणंदे, दुग्गए णाममेगे सुप्पडिताणंदे ४। [सुग्गए णाममेगे दुप्पडिताणंदे, सुग्गए णाममेगे सुप्पडिताणंदे]। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. दुर्गत और दुष्प्रत्यानन्द- कोई पुरुष दुर्गत और दुष्प्रत्यानन्द (कृतघ्न) होता है। २. दुर्गत और सुप्रत्यानन्द- कोई पुरुष दुर्गत होकर भी सुप्रत्यानन्द (कृतज्ञ) होता है। ३. सुगत और दुष्प्रत्यानन्द- कोई पुरुष सुगत होकर भी दुष्प्रत्यानन्द (कृतघ्न) होता है। ४. सुगत और सुप्रत्यानन्द– कोई पुरुष सुगत और सुप्रत्यानन्द (कृतज्ञ) होता है (४५७)। विवेचन- जो पुरुष दूसरे के द्वारा किये गये उपकार को नहीं मानता है, उसे दुष्प्रत्यानन्द या कृतघ्न कहते हैं और जो दूसरे के द्वारा किये गये उपकार को मानता है, उसे सुप्रत्यानन्द या कृतज्ञ कहते हैं। ४५८- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा दुग्गए णाममेगे दुग्गतिगामी, दुग्गए णाममेगे सुग्गतिगामी। [सुग्गए णाममेगे दुग्गतिगामी, सुग्गए णाममेगे सुग्गतिगामी] ४। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. दुर्गत और दुर्गतिगामी— कोई पुरुष दुर्गत (दरिद्र) और (खोटे कार्य करके) दुर्गतिगामी होता है। २. दुर्गत और सुगतिगामी—कोई पुरुष दुर्गत होकर भी (उत्तम कार्य करके) सुगतिगामी होता है। ३. सुगत और दुर्गतिगामी— कोई पुरुष सुगत (सम्पन्न) और दुर्गतिगामी होता है। ४. सुगत और सुगतिगामी— कोई पुरुष सुगत और सुगतिगामी होता है (४५८)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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