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चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश
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चार कारणों से देव सिंहनाद करते हैं, जैसे१. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, २. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर, ३. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर, ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाणकल्याण की महिमा के अवसर पर। इन चार कारणों से देव सिंहनाद करते हैं (४४६)।
४४७ – चउहि ठाणेहिं देवा चेलुक्खेवं करेजा, तं जहा—अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु।
चार कारणों से देव चेलोत्क्षेप (वस्त्र का ऊपर फेंकना) करते हैं, जैसे१. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, २. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर, ३. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर,
४. अर्हन्तों के परिनिर्वाणकल्याण की महिमा के अवसर पर। . इन चार कारणों से देव चेलोत्क्षेप करते हैं (४४७)।
४४८- चउहिं ठाणेहिं देवाणं चेइयरुक्खा चलेज्जा, तं जहा—अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु।
चार कारणों से देवों के चैत्यवृक्ष चलायमान होते हैं, जैसे१. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, २. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर, ३. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर, ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाणकल्याण की महिमा के अवसर पर। इन चार कारणों से देवों के चैत्यवृक्ष चलायमान होते हैं (४४८)।
४४९- चउहि ठाणेहिं लोगंतिया देवा माणुसं लोगं हव्वमागच्छेज्जा, तं जहा—अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु।
चार कारणों से लोकान्तिक देव मनुष्यलोक में तत्काल आते हैं, जैसे१. अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, २. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर, ३. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के अवसर पर, ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाणकल्याण की महिमा के अवसर पर। इन चार कारणों से लोकान्तिक देव मनुष्यलोक में आते हैं (४४९)।