________________
३४०
स्थानाङ्गसूत्रम्
जिन श्रमणोपासकों में श्रमणों के प्रति कारणवश प्रीति और कारण विशेष से अप्रीति दोनों पाई जाती है, उनकी तुलना मित्र से की गई है, ऐसे श्रमणोपासक अनुकूलता के समय प्रीति रखते हैं और प्रतिकूलता के समय अप्रीति या उपेक्षा करने लगते हैं। ___जो केवल नाम से श्रमणोपासक कहलाते हैं, किन्तु जिनके भीतर श्रमणों के प्रति वात्सल्य या भक्तिभाव नहीं होता, प्रत्युत जो छिद्रान्वेषण ही करते रहते हैं, उनकी तुलना सपत्नी (सौत) से की गई है।
इस प्रकार श्रद्धा, भक्ति-भाव और वात्सल्य की हीनाधिकता के आधार पर श्रमणोपासक चार प्रकार के कहे गये हैं।
४३१- चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता, तं जहा—अद्दागसमाणे पडागसमाणे, खाणुसमाणे, खरकंटयसमाणे।
पुनः श्रमणोपासक चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आदर्शसमान, २. पताकासमान, ३. स्थाणुसमान, ४. खरकण्टकसमान (४३१)।
विवेचन— जो श्रमणोपासक आदर्श (दर्पण) के समान निर्मलचित्त होता है, वह साधु जनों के द्वारा प्रतिपादित उत्सर्गमार्ग और अपवादमार्ग के आपेक्षिक कथन को यथावत् स्वीकार करता है, वह आदर्श के समान कहा गया है।
__जो श्रमणोपासक पताका (ध्वजा) के समान अस्थिरचित्त होता है, वह विभिन्न प्रकार की देशना रूप वायु से प्रेरित होने के कारण किसी एक निश्चित तत्त्व पर स्थिर नहीं रह पाता, उसे पताका के समान कहा गया है।
जो श्रमणोपासक स्थाणु (सूखे वृक्ष के ढूंठ) के समान नमन-स्वभाव से रहित होता है, अपने कदाग्रह को समझाये जाने पर भी नहीं छोड़ता है, वह स्थाणु-समान कहा गया है।
जो श्रमणोपासक महाकदाग्रही होता है, उसको दूर करने के लिए यदि कोई सन्त पुरुष प्रयत्न करता है तो वह तीक्ष्ण दुर्वचन रूप कण्टकों से उसे भी विद्ध कर देता है, उसे खरकण्टक-समान कहा गया है।
इस प्रकार चित्त की निर्मलता, अस्थिरता, अनम्रता और कलुषता की अपेक्षा चार भेद कहे गये हैं।
४३२ – समणस्स णं भगवतो महावीरस्स समणोवासगाणं सोधम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे चत्तारि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता।
__ सौधर्म कल्प में अरुणाभ विमान में उत्पन्न हुए श्रमण भगवान् महावीर के श्रमणोपासकों की स्थिति चार पल्योपम की कही गई है (४३२)। अधुनोपपन्न-देव-सूत्र ___ ४३३– चउहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज माणुसं लोगं हत्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए, तं जहा—
१. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अन्झोववण्णे, से णं माणुस्सए कामभोगे णो आढाइ, णो परियाणाति, णो अटुं बंधइ, णो णियाणं पगरेति, णो