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चतुर्थ स्थान – तृतीय उद्देश
३३९ महाकर्म-अल्पकर्म-श्रमणोपासिका-सूत्र
४२९- चत्तारि समणोवासियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. राइणिया समणोवासिता महाकम्मा तहेव चत्तारि गमा। [महाकिरिया अणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया भवति]।
२. [राइणिया समणोवासिता अप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी समिता धम्मस्स आराहिया भवति]। ३.[ओमराइणिया समणोवासिता महाकम्मा महाकिरिया अणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया
भवति]
४. [ओमराइणिया समणोवासिता अप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी समिता धम्मस्स आराहिया भवति।
श्रमणोपासिकाएं चार प्रकार की कही गई हैं, जैसे
१. कोई रानिक श्रमणोपासिका महाकर्मा, महाक्रिय, अनातापिनी और असमित होने के कारण धर्म की अनाराधिका होती है।
२. कोई रात्लिक श्रमणोपासिका अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, आतापिनी और समित होने के कारण धर्म की आराधिका होती है।
३. कोई अवमरानिक श्रमणोपासिका महाकर्मा, महाक्रिय, अनातापिनी और असमित होने के कारण धर्म की अनाराधिका होती है।
४. कोई अवमरात्निक श्रमणोपासिका अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, आतापिनी और समित होने के कारण धर्म की आराधिका होती है (४२९)। श्रमणोपासक-सूत्र
४३०-चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता, तं जहा—अम्मापितिसमाणे, भातिसमाणे, मित्तसमाणे, सवत्तिसमाणे।
श्रमणोपासक चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. माता-पिता के समान, २. भाई के समान, ३. मित्र के समान, ४. सपत्नी के समान (४३०)।
विवेचन— श्रमण-निर्ग्रन्थ साधुओं की उपासना-आराधना करने वाले गृहस्थ श्रावकों को श्रमणोपासक कहते हैं। जिन श्रमणोपासकों में श्रमणों के प्रति अत्यन्त स्नेह, वात्सल्य और श्रद्धा का भाव निरन्तर प्रवहमान रहता है उनकी तुलना माता-पिता से की गई है। वे तात्त्विक-विचार और जीवन-निर्वाह—दोनों ही अवसरों पर प्रगाढ़ वात्सल्य और भक्ति-भाव का परिचय देते हैं।
जिन श्रमणोपासकों में श्रमणों के प्रति यथावसर वात्सल्य और यथावसर उग्रभाव दोनों होते हैं, उनकी तुलना भाई से की गई है, वे तत्त्व-विचार आदि के समय कदाचित् उग्रता प्रकट कर देते हैं, किन्तु जीवन-निर्वाह के प्रसंग में उनका हृदय वात्सल्य से परिपूर्ण रहता है।