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________________ चतुर्थ स्थान तृतीय उद्देश णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, एगे सुयसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो सुयसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ] | पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. श्रुतसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न – कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है, किन्तु चरित्रसम्पन्न नहीं होता । २. चरित्रसम्पन्न, न श्रुतसम्पन्न — कोई पुरुष चरित्रसम्पन्न होता है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं होता ३. श्रुतसम्पन्न भी, चरित्रसम्पन्न भी— कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न भी होता है और चरित्रसम्पन्न भी होता है। ४. न श्रुतसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न — कोई पुरुष न श्रुतसम्पन्न होता है और न चरित्रसम्पन्न ही होता है (४०९)। शील-सूत्र ३३१ ४१० – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सीलसंपणे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, एगे सीलसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो सीलसंपण्णे णो चरित्तसंपणे । एते एक्कवीसं भंगा भाणियव्वा । पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. शीलसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न — कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु चरित्रसम्पन्न नहीं होता । २. चरित्रसम्पन्न, न शीलसम्पन्न — कोई पुरुष चरित्रसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता । ३. शीलसम्पन्न भी, चरित्रसम्पन्न भी— कोई पुरुष शीलसम्पन्न भी होता है और चरित्रसम्पन्न भी होता है । ४. न शीलसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न — कोई पुरुष न शीलसम्पन्न होता है और न चरित्रसम्पन्न ही होता है (४१०) । आचार्य-सूत्र ४११ – चत्तारि फला पण्णत्ता, जहा— आमलगमहुरे, मुद्दियामहुरे, खीरमहुरे, खंडमहुरे । एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा— आमलगमहुरफलसमाणे, जाव [ मुद्दियामहुरफलसमाणे, खीरमहुरफलसमाणे ] खंडमहुरफलसमाणे । चार प्रकार के फल कहे गये हैं, जैसे— १. आमलक-मधुर- आंवले के समान मधुर । २. मृद्वीका - मधुर - द्राक्षा के समान मधुर । ३. क्षीर- मधुर — दूध के समान मधुर । ४. खण्ड- मधुर — खांड-शक्कर के समान मधुर । इसी प्रकार आचार्य भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. आमलकमधुर फल समान — कोई आचार्य आंवले के फल समान अल्पमधुर होते हैं । २. मृद्वीकामधुर फल समान कोई आचार्य दाख के फल समान मधुर होते हैं। ३. क्षीरमधुर फल समान कोई आचार्य दूध- मधुर फल समान अधिक मधुर होते हैं।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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