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चतुर्थ स्थान – तृतीय उद्देश
३२१ घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. युक्त और युक्त—कोई घोड़ा जीन-पलान से युक्त होता है और वेग से भी युक्त होता है। २. युक्त और अयुक्त– कोई घोड़ा जीन-पलान से युक्त तो होता है, किन्तु वेग से युक्त नहीं होता। ३. अयुक्त और युक्त– कोई घोड़ा जीन-पलान से अयुक्त होकर भी वेग से युक्त होता है। ४. अयुक्त और अयुक्त— कोई घोड़ा न जीन-पलान से युक्त होता है और न वेग से ही युक्त होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. युक्त और युक्त- कोई पुरुष वस्त्राभरण से युक्त है और उत्साह आदि गुणों से भी युक्त है। २. युक्त और अयुक्त– कोई पुरुष वस्त्राभरण से तो युक्त है, किन्तु उत्साह आदि गुणों से युक्त नहीं है। ३. अयुक्त और युक्त– कोई पुरुष वस्त्राभरण से अयुक्त है, किन्तु उत्साह आदि गुणों से युक्त है। ४. अयुक्त और अयुक्त– कोई पुरुष न वस्त्राभरण से युक्त है और न उत्साह आदि गुणों से युक्त है (३८०)।
३८१— एवं जुत्तपरिणते, जुत्तरूवे, जुत्तसोभे, सव्वेसिं पडिवक्खो पुरिसजाता। चत्तारि हया पण्णत्ता, तं जहा—जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते।
पुनः घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. युक्त और युक्त-परिणंत— कोई घोड़ा युक्त भी होता है और युक्त-परिणत भी होता है। २. युक्त और अयुक्त-परिणत— कोई घोड़ा युक्त होकर भी अयुक्त-परिणत होता है।। ३. अयुक्त और युक्त-परिणत- कोई घोड़ा अयुक्त होकर भी युक्त-परिणत होता है। ४. अयुक्त और अयुक्त-परिणत- कोई घोड़ा अयुक्त भी होता है और अयुक्त-परिणत भी होता है। इसी प्रकारं पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. युक्त और युक्त-परिणत — कोई पुरुष युक्त होकर युक्त-परिणत होता है। २. युक्त और अयुक्त-परिणत— कोई पुरुष युक्त होकर अयुक्त-परिणत होता है। ३. अयुक्त और युक्त-परिणत- कोई पुरुष अयुक्त होकर युक्त-परिणत होता है। ४. अयुक्त और अयुक्त-परिणत— कोई पुरुष अयुक्त होकर अयुक्त-परिणत होता है (३८१) ।
३८२— एवं जहा हयाणं तहा गयाण वि भाणियव्वं, पडिवक्खे तहेव पुरिसजाता। [चत्तारि हया पण्णत्ता, तं जहा जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे।।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे]।
पुनः घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—