SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२० स्थानाङ्गसूत्रम् सारथी-सूत्र ३७९– चत्तारि सारही पण्णत्ता, तं जहा—जोयावइत्ता णामं एगे णो विजोयावइत्ता, विजोयावइत्ता णाममेगे णो जोयावइत्ता, एगे जोयावइत्तावि विजोयावइत्तावि, एगे णो जोयावइत्ता णो विजोयावइत्ता। ___ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जोयावइत्ता णामं एगे णो विजोयावइत्ता, विजोयावइत्ता णामं एगे णो जोयावइत्ता, एगे जोयावइत्तावि विजोयावइत्तावि, एगे णो जोयावइत्ता णो विजोयावइत्ता। सारथि (रथ-वाहक) चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. योजयिता, न वियोजयिता- कोई सारथि घोड़े आदि को रथ में जोड़ने वाला होता है, किन्तु उन्हें मुक्त करने वाला नहीं होता। ___. वियोजयिता, न योजयिता— कोई सारथि घोड़े आदि को रथ से मुक्त करने वाला होता है, किन्तु उन्हें रथ में जोड़ने वाला नहीं होता। ३. योजयिता भी, वियोजयिता भी— कोई सारथि घोड़े आदि को रथ में जोड़ने वाला भी होता है और उन्हें रथ से मुक्त करने वाला भी होता है। ४. न योजयिता, न वियोजयिता— कोई सारथि न रथ में घोड़े आदि को जोड़ता ही है और न उन्हें रथ से मुक्त ही करता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. योजयिता, न वियोजयिता- कोई पुरुष दूसरों को उत्तम कार्यों से युक्त तो करता है, किन्तु अनुचित कार्यों से उन्हें वियुक्त नहीं करता। २. वियोजयिता, न योजयिता- कोई पुरुष दूसरों को अयोग्य कार्यों से वियुक्त तो करता है, किन्तु उत्तम कार्यों में युक्त नहीं करता। ३. योजयिता भी, वियोजयिता भी— कोई पुरुष दूसरों को उत्तम कार्यों में युक्त भी करता है और अनुचित कार्यों से वियुक्त भी करता है। ४. न योजयिता, न वियोजयिता- कोई पुरुष दूसरों को उत्तम कार्यों में न युक्त ही करता है और न अनुचित कार्यों से वियुक्त ही करता है (३७९)। युक्त-अयुक्त-सूत्र ३८०- चत्तारि हया पण्णत्ता, तं जहा—जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णांममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy