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स्थानाङ्गसूत्रम् ३७५– चत्तारि जुग्गा पण्णत्ता, तं जहा—जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते।
चार प्रकार के युग्य (घोड़ा आदि अथवा गोल्ल देश में प्रसिद्ध दो हाथ का चौकोर यान-विशेष) कहे गये हैं, जैसे
१. युक्त और युक्तरूप— कोई युग्य उपकरणों (काठी आदि) से भी युक्त होता है और उत्तम गति (चाल) से भी युक्त होता है।
२. युक्त और अयुक्त– कोई युग्य उपकरणों से युक्त होता है, किन्तु उत्तम गति से युक्त नहीं होता है। ३. अयुक्त और युक्त– कोई युग्य उपकरणों से तो युक्त नहीं होता, किन्तु उत्तम गति से युक्त होता है। ४. अयुक्त और अयुक्त— कोई युग्य न उपकरणों से युक्त होता है और न उत्तम गति से युक्त होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. युक्त और युक्त- कोई पुरुष सम्पत्ति से भी युक्त होता है और सदाचार से भी युक्त होता है। २. युक्त और अयुक्त– कोई पुरुष सम्पत्ति से तो युक्त होता है, किन्तु सदाचार से युक्त नहीं होता है। ३. अयुक्त और युक्त-कोई पुरुष सम्पत्ति से तो युक्त नहीं होता, किन्तु सदाचार से युक्त होता है।
४. अयुक्त और अयुक्त— कोई पुरुष न सम्पत्ति से ही युक्त होता है और न सदाचार से ही युक्त होता है (३७५)।
___३७६- चत्तारि आलावगा, तथा जुग्गेण वि, पडिवक्खो, तहेव पुरिसजाया जाव सोभेत्ति। एवं जहा जाणेण [चत्तारि जुग्गा पण्णत्ता, तं जहा—जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते।]
पुनः युग्य चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. युक्त और युक्त-परिणत— कोई युग्य युक्त और युक्त परिणत होता है। २. युक्त और अयुक्त-परिणत- कोई युग्य युक्त होकर भी अयुक्त-परिणत होता है। ३. अयुक्त और युक्त-परिणत— कोई युग्य अयुक्त होकर भी युक्त-परिणत होता है। ४. अयुक्त और अयुक्त-परिणत- कोई युग्य न युक्त ही होता है और न युक्त-परिणत ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. युक्त और युक्त-परिणत— कोई पुरुष गुणों से भी युक्त होता है और योग्य परिणतिवाला भी होता है। २. युक्त और अयुक्त-परिणत— कोई पुरुष गुणों से तो युक्त होता है, किन्तु योग्य परिणतिवाला नहीं होता। ३. अयुक्त और युक्त-परिणत— कोई पुरुष गुणों से तो युक्त नहीं होता, किन्तु योग्य परिणति वाला होता है।