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________________ चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश २९५ १. एकोरुक, २. आभाषिक, ३. वैषाणिक, ४. लांगुलिक (३२१)। विवेचन– अन्तीपों में रहने वाले मनुष्यों के जो प्रकार यहां बतलाये गए हैं, उनके विषय में टीकाकार ने लिखा है—'द्वीपनामतः पुरुषाणां नामान्येव ते तु सर्वाङ्गोपाङ्गसुन्दराः, दर्शने मनोरमाः स्वरूपतो, नैकोरुकादय एवेति।' अर्थात् पुरुषों के जो नाम कहे गये हैं वे द्वीपों के नाम से ही हैं। पुरुष तो समस्त अंगों और उपांगों से सुन्दर हैं, देखने में स्वरूप से मनोरम हैं। वे एकोरुक–एक जांघ वाले आदि नहीं हैं। तात्पर्य यह कि उनके नामों का अर्थ उनमें घटित नहीं होता। मुनि श्री नथमलजी ने 'ठाणं' में जो अर्थ किया है वह टीकाकार के मन्तव्य से विरुद्ध एवं चिन्तनीय है। ३२२– तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं चत्तारि-चत्तारि जोयणसयाई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा- हयकण्णदीवे, गयकण्णदीवे, गोकण्णदीवे, सक्कुलिकण्णदीवे। तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा हयकण्णा, गयकण्णा, गोकण्णा, सक्कुलिकण्णा। उन उपर्युक्त अन्तीपों की चारों विदिशाओं से लवणसमुद्र के भीतर चार-चार सौ योजन जाने पर चार अन्तर्वीप कहे गये हैं, जैसे १. हयकर्ण द्वीप, २. गजकर्ण द्वीप, ३. गोकर्ण द्वीप, ४. शष्कुलीकर्ण द्वीप। उन अन्तर्वीपों पर चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं, जैसे१. हयकर्ण, २. गजकर्ण, ३. गोकर्ण, ४. शष्कुलीकर्ण (३२२)। ३२३– तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं पंच-पंच जोयणसयाइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा—आयंसमुहदीवे, मेंढमुहदीवे, अओमुहदीवे, गोमुहदीवे। तेसु णं.दीवेसु चउव्विहा मणुस्सा भाणियव्वा। [परिवसंति, तं जहा-आयंसमुहा, मेंढमुहा, अओमुहा', गोमुहा]। उन अन्तर्वीपों की चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र के भीतर पांच-पांच सौ योजन जाने पर चार अन्तर्वीप कहे गये हैं, जैसे १. आदर्शमुख द्वीप, २. मेषमुख द्वीप, ३. अयोमुख द्वीप, ४. गोमुख द्वीप। उन द्वीपों पर चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं, जैसे१. आदर्शमुख, २. मेषमुख, ३. अयोमुख, ४. गोमुख (३२३)। ३२४- तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं छ-छ जोयणसयाई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा—आसमुहदीवे, हत्थिमुहदीवे, सीहमुहदीवे, वग्घमुहदीवे। तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मणुस्सा भाणियव्वा [ परिवसंति, तं जहा—आसमुहा, हत्थिमुहा, १. अओमुहा के स्थान पर अआमुह (अजामुख) पाठ भी है।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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