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________________ २९४ संग्रहणी - गाथा जंबुद्दीवगआवस्सगं तु कालओ चूलिया जाव । धायइसंडे पुक्खरवरे य पुव्वावरे पासे ॥ १॥ स्थानाङ्गसूत्रम् इसी प्रकार धातकीषण्ड द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी काल - पद (सूत्र ३०४) से लेकर यावत् मन्दरचूलिका (सूत्र ३१८) तक का सर्व कथन जानना चाहिए। इसी प्रकार (अर्ध) पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी कालपद से लेकर यावत् मन्दरचूलिका तक का सर्व कथन जानना चाहिए (३१९) । कालपद से लेकर मन्दरचूलिका तक जम्बूद्वीप में किया गया सभी वर्णन धातकीषण्डद्वीप के और अर्द्ध पुष्करवरद्वीप के पूर्व अपर पार्श्वभाग में भी कहा गया है। द्वार- सूत्र ३२० - जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा — विजये, वेजयंते, जयंते, अपराजिते । ते णं दारा चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं पण्णत्ता । तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा — विजये, वेजयंते, जयंते अपराजिते । जम्बूद्वीप नामक द्वीप के चार द्वार हैं, जैसे— १. विजयद्वार, २. वैजयन्तद्वार, ३. जयन्तद्वार, ४. अपराजितद्वार । वे द्वार विष्कम्भ (विस्तार) की अपेक्षा चार योजन और प्रवेश (मुख) की अपेक्षा भी चार योजन के कहे गये हैं । उन द्वारों पर पल्योपम की स्थिति वाले यावत् महर्धिक चार देव रहते हैं, जैसे १. विजयदेव, २. वैजयन्तदेव, ३. जयन्तदेव, ४. अपराजितदेव (३२० ) । अन्तद्वीप - सूत्र ३२१ – जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स चउसु विदिसासु लवणसमुद्दं तिण्णि-तिण्णि जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा— एगूरुयदीवे, आभासियदीवे, वेसाणियदीवे, गंगोलियदीवे । सुणं दीवेसु चउव्विहा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा— एगूरुया, आभासिया, वेसाणिया, गंगोलिया । जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में क्षुल्लक हिमवान् वर्षधर पर्वत की चारों विदिशाओं में लवण - समुद्र के भीतर तीन-तीन सौ योजन जाने पर चार अन्तद्वीप कहे गये हैं, यथा १. एकोरुक द्वीप, २. आभाषिक द्वीप, ३. वैषाणिक द्वीप, ४. लांगुलिक द्वीप । उन द्वीपों पर चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं, जैसे—
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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