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________________ स्थानाङ्गसूत्रम् उक्त दशों ही प्रकृति, स्थिति, अनुभाव और प्रदेश के भेद से चार-चार प्रकार के होते हैं। उनमें से बन्ध, उदीरणा, उपशम, संक्रम, निधत्त और निकाचित के चार-चार भेदों का वर्णन सूत्रों में किया ही गया है। शेष उद्वर्तना और अपवर्तना का समावेश विपरिणामनोपक्रम में किया गया है। २९० सूत्र २९६ में अल्प - बहुत्व का निरूपण किया गया है। कर्मों की प्रकृति, स्थिति, अनुभव और प्रदेशों की हीनाधिकता को अल्प - बहुत्व कहते हैं । संख्या सूत्र ३००—– चत्तारि एक्का पण्णत्ता, तं जहा —— दविएक्कए, माउएक्कए, पज्जवेक्कए, संगहेक्कए । 'एक' संख्या चार प्रकार की कही गई है, जैसे— १. द्रव्यैक — द्रव्यत्व गुण की अपेक्षा सभी द्रव्य एक हैं। २. मातृकैक— 'उप्पन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा' अर्थात् प्रत्येक पदार्थ नवीन पर्याय की अपेक्षा उत्पन्न होता है, पूर्व पर्याय की अपेक्षा नष्ट होता है और द्रव्य की अपेक्षा ध्रुव रहता है, यह मातृकापद कहलाता का बीजभूत मातृकापद एक है। । यह सभी नयों ३. पर्यायैक— पर्यायत्व सामान्य की अपेक्षा सर्व पर्याय एक हैं। ४. संग्रहैक- समुदाय - सामान्य की अपेक्षा बहुत से भी पदार्थों का संग्रह एक है (३००) । ३०१ – चत्तारि कती पण्णत्ता, तं जहा—दवियकती, माउयकती, पज्जवकती, संगहकती। संख्या - वाचक 'कति' चार प्रकार का कहा गया है, जैसे १. द्रव्यकति— द्रव्य विशेषों की अपेक्षा द्रव्य अनेक हैं । २. मातृकाकति— उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य की अपेक्षा मातृका अनेक हैं। ३. पर्यायकति— विभिन्न पर्यायों की अपेक्षा पर्याय अनेक हैं। ४. संग्रहकति — अवान्तर जातियों की अपेक्षा संग्रह अनेक हैं (३०१) । ३०२ – चत्तारि सव्वा पण्णत्ता, तं जहा—णामसव्वए, ठवणसए, आएससव्वए, णिरवसेससव्वए । है। 'सर्व' चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे— १. नामसर्व नामनिक्षेप की अपेक्षा जिसका 'सर्व' यह नाम रखा जाय, वह नामसर्व है । २. स्थापनास स्थापनानिक्षेप की अपेक्षा जिस व्यक्ति में 'सर्व' का आरोप किया जाय, वह स्थापनासर्व ३. आदेशसर्व अधिक की मुख्यता से और अल्प की गौणता से कहा जाने वाला आपेक्षिक सर्व 'आदेशसर्व' कहलाता है। जैसे— बहुभाग पुरुषों के चले जाने पर और कुछ के शेष रहने पर भी कह दिया जाता है कि 'सर्व ग्राम' गया। ४. निरवशेषसर्व सम्पूर्ण व्यक्तियों के आश्रय से कहा जाने वाला 'सर्व' निरवशेषसर्व कहलाता है। जैसे— सर्व देव अनिमिष (नेत्र - टिमिकार - रहित) होते हैं, क्योंकि एक भी देव नेत्र - टिमिकार - सहित नहीं होता (३०२) ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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