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कथा - सूत्र
२४६ - चउव्विहा कहा पण्णत्ता, तं जहा— अक्खेवणी, विक्खेवणी, संवेयणी, णिवेदणी ।
धर्मकथा चार प्रकार की कही गई है। जैसे—
१. आक्षेपणी कथा— ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप आदि के प्रति आकर्षण करने वाली कथा करना ।
२. विक्षेपणी कथा— पर मत का कथन कर स्व-मत की स्थापना करने वाली कथा करना ।
स्थानाङ्गसूत्रम्
३. संवेजनी या संवेदनी कथा— संसार के दुःख, शरीर की अशुचिता आदि दिखाकर वैराग्य उत्पन्न करने वाली चर्चा करना ।
४. निर्वेदनी कथा —— कर्मों के फल बतलाकर संसार से विरक्ति उत्पन्न करने वाली चर्चा करना (२४६) । २४७ अक्खेवणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा— आयारअक्खेवणी, ववहारअक्खेवणी, पण्णत्तिअक्खेवणी, दिट्ठिवायअक्खेवणी ।
आक्षेपणी कथा चार प्रकार की कही गई है, जैसे—
१. आचाराक्षेपणी कथा --- सांधु और श्रावक के आचार की चर्चा कर उसके प्रति श्रोता को आकर्षित करना । २. व्यवहाराक्षेपणी कथा — व्यवहार - प्रायश्चित्त लेने और न लेने के गुण-दोषों की चर्चा करना ।
३. प्रज्ञप्ति - आक्षेपणी कथा - संशय - ग्रस्त श्रोता के संशय को दूर कर उसे सम्बोधित करना ।
४. दृष्टिवादा क्षेपणी कथा— विभिन्न नयों की दृष्टियों से श्रोता की योग्यतानुसार तत्त्व का निरूपण करना
(२४७)।
२४८ - विक्खेवणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा— ससमयं कहेइ, ससमयं कहित्ता परसमयं कहेइ, परसमयं कहेत्ता ससमयं ठावइता भवति, सम्मावायं कहेइ, सम्मावायं कहेत्ता मिच्छावायं कहेइ, मिच्छावायं कहेत्ता सम्मावायं ठावइता भवति ।
विक्षेपणी कथा चार प्रकार
कही गई है, जैसे—
१. पहले स्व-समय को कहना, पुनः स्वसमय कहकर पर - समय को कहना।
२. पहले पर- समय को कहना, पुनः स्वसमय को कहकर उसकी स्थापना करना ।
३. घुणाक्षरन्याय से जिनमत के सदृश पर समय-गत सम्यक् तत्त्वों का कथन कर पुनः उनके मिथ्या तत्त्वों
का कहना ।
अथवा आस्तिकवाद का निरूपण कर नास्तिकवाद का निरूपण करना ।
४. पर समय-गत मिथ्या तत्त्वों का कथन कर सम्यक् तत्त्व का निरूपण करना ।
अथवा नास्तिकवाद का निराकरण कर आस्तिकवाद की स्थापना करना (२४८) ।
२४९ - संवेयणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा— इहलोगसंवेयणी, परलोगसंवयेणी, आतसरीरसंवेयणी, परसरीरसंवयेणी ।
संवेजनी या संवगेनी कथा चार प्रकार की कही गई है, जैसे