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________________ [३०] प्राग्भार, गुफा आकर, द्रह और सरिताओं का कथन है। छट्टे नम्बर में कही हुई बात नन्दी में भी इसी प्रकार है। समवायाङ्ग व नन्दीसूत्र के अनुसार स्थानाङ्ग की वाचनाएं संख्येय हैं, उसमें संख्यात श्लोक हैं, संख्यात संग्रहणियाँ हैं। अंगसाहित्य में उस का तृतीय स्थान है। उसमें एक श्रुतस्कन्ध है, दश अध्ययन हैं। इक्कीस उद्देशकाल हैं। बहत्तर हजार पद हैं। संख्यात अक्षर हैं। यावत् जिनप्रज्ञप्त पदार्थों का वर्णन है। स्थानाङ्ग में दश अध्ययन हैं। दश अध्ययनों का एक ही श्रुतस्कन्ध है। द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ अध्ययन के चार-चार उद्देशक हैं। पंचम अध्ययन के तीन उद्देशक हैं। शेष छह अध्ययनों में एक-एक उद्देशक हैं। इस प्रकार इक्कीस उद्देशक हैं। समवायांग और नन्दीसूत्र के अनुसार स्थानाङ्ग की पदसंख्या बहत्तर हजार कही गई है। आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित स्थानाङ्ग की सटीक प्रति में सात सौ ८३ (७८३) सूत्र हैं। यह निश्चित है कि वर्तमान में उपलब्ध स्थानाङ्ग में बहत्तर हजार पद नहीं है। वर्तमान में प्रस्तुत सूत्र का पाठ ३७७० श्लोक परिमाण है। स्थानाङ्गसूत्र ऐसा विशिष्ट आगम है जिसमें चारों ही अनुयोगों का समावेश है। मुनि श्री कन्हैयालाल जी "कमल" ने लिखा है कि "स्थानाङ्ग में द्रव्यानुयोग की दृष्टि से ४२६ सूत्र, चरणानुयोग की दृष्टि से २१४ सूत्र, गणितानुयोग की दृष्टि से १०९ सूत्र और धर्मकथानुयोग की दृष्टि से ५१ सूत्र हैं। कुल ८०० सूत्र हुये। जब कि मूल सूत्र ७८३ हैं। उन में कितने ही सूत्रों में एक-दूसरे अनुयोग से सम्बन्ध है। अत: अनुयोग-वर्गीकरण की दृष्टि से सूत्रों की संख्या में अभिवृद्धि हुई है।" क्या स्थानाङ्ग अर्वाचीन है ? __ स्थानाङ्ग में श्रमण भगवान् महावीर के पश्चात् दूसरी से छठी शताब्दी तक की अनेक घटनाएं उल्लिखित हैं, जिससे विद्वानों को यह शंका हो गयी है कि प्रस्तुत आगम अर्वाचीन है। वे शंकाएं इस प्रकार हैं (१) नववें स्थान में गोदासगण, उत्तरबलिस्सहगण, उद्देहगण, चारणगण, उडुवातितगण, विस्सवातितगण, कामड्ढिगण, माणवगण और कोडितगण इन गणों की उत्पत्ति का विस्तृत उल्लेख कल्पसूत्र में है। प्रत्येक गण की चार-चार शाखाएं, उद्देह आदि गणों के अनेक कुल थे। ये सभी गण श्रमण भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात दो सौ से पाँच सौ वर्ष की अवधि तक . उत्पन्न हुये थे। (२) सातवें स्थान में जमालि, तिष्यगुप्त, आषाढ़, अश्वमित्र, गङ्ग, रोहगुप्त, गोष्ठामाहिल, इन सात निह्नवों का वर्णन है। इन सात निह्नवों में से दो निह्नव भगवान् महावीर को केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद हुए और शेष पांच निर्वाण के बाद हुये।" इनका अस्तित्वकाल भगवान महावीर के केवलज्ञान प्राप्ति के चौदहवर्ष बाद से निर्वाण के पाँच सौ चौरासी वर्ष पश्चात तक का है। अर्थात् वे तीसरी शताब्दी से लेकर छठी शताब्दी के मध्य में हुये। उत्तर में निवेदन है कि जैन दृष्टि से श्रमण भगवान् महावीर सर्वज्ञ सर्वदर्शी थे। अतः वे पश्चात् होने वाली घटनाओं का संकेत करें, इसमें किसी प्रकार का आश्चर्य नहीं है। जैसे—नवम स्थान में आगामी उत्सर्पिणी-काल के भावी तीर्थंकर महापद्म का चरित्र दिया है। और भी अनेक भविष्य में होने वाली घटनाओं का उल्लेख है। दूसरी बात यह है कि पहले आगम श्रुतिपरम्परा के रूप में चल आ रहे थे। वे आचार्य स्कन्दिल और देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के समय लिपिबद्ध किये गये। उस समय वे घटनाएं, जिनका प्रस्तुत आगम में उल्लेख है, घटित हो चुकी थीं। ९४. समवायांग, सूत्र १३९, पृष्ठ १२३ – मुनि कन्हैयालालजी म. ९५. नन्दीसूत्र ८७ पृष्ठ ३५ -पुण्यविजयजी म. कल्पसूत्र, सूत्र २०६ से २१६ तक -देवेन्द्रमुनि ९७. णाणुप्पत्तीए दुवे उप्पण्णा णिव्वुए सेसा। ९८. चोद्दस सोलहसवासा, चोद्दस वीसुत्तरा य दोण्णि सया। अट्ठावीसा य दुवे, पंचेव सया उ चोयाला ॥ —आवश्यकनियुक्ति, गाथा ७८४ -आवश्यकनियुक्ति, गाथा ७८३-७८४
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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