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________________ चतुर्थ स्थान- द्वितीय उद्देश २५७ ३. अनार्य और आर्यरूप- कोई पुरुष जाति से अनार्य, किन्तु आर्य रूपवाला होता है। ४. अनार्य और अनार्यरूप- कोई पुरुष जाति से अनार्य और अनार्य रूपवाला होता है (२१३)। २१४ – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा अजे णाममेगे अजमणे, अजे णाममेगे अणजमणे, अणज्जे णाममेगे अजमणे, अणजे णाममेगे अणजमणे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आर्य और आर्यमन– कोई पुरुष जाति से आर्य और मन से भी आर्य होता है। २. आर्य और अनार्यमन– कोई पुरुष जाति से आर्य, किन्तु मन से अनार्य होता है। ३. अनार्य और आर्यमन– कोई पुरुष जाति से अनार्य, किन्तु मन से आर्य होता है। ४. अनार्य और अनार्यमन- कोई पुरुष जाति से अनार्य और मन से भी अनार्य होता है (२१४)। २१५– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अजे णाममेगे अजसंकप्पे, अज्जे णाममेगे अणजसंकप्पे, अणजे णाममेगे अजसंकप्पे, अणजे णाममेगे अणजसंकप्पे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आर्य और आर्यसंकल्प- कोई पुरुष जाति से आर्य और संकल्प से भी आर्य होता है। २. आर्य और अनार्यसंकल्प- कोई पुरुष जाति से आर्य, किन्तु अनार्य-संकल्प वाला होता है। ३. अनार्य और आर्यसंकल्प- कोई पुरुष जाति से अनार्य, किन्तु आर्य-संकल्प वाला होता है। ४. अनार्य और अनार्यसंकल्प- कोई पुरुष जाति से अनार्य और अनार्य संकल्प वाला होता है (२१५)। २१६– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अजे णाममेगे अजपण्णे, अजे णाममेगे अणजपण्णे, अणजे णाममेगे अजपण्णे, अणजे णाममेगे अणजपण्णे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आर्य और आर्यप्रज्ञ— कोई पुरुष जाति से आर्य और आर्य प्रज्ञावाला होता है। २. आर्य और अनार्यप्रज्ञ- कोई पुरुष जाति से आर्य किन्तु अनार्य प्रज्ञावाला होता है। ३. अनार्य और आर्यप्रज्ञ— कोई पुरुष जाति से अनार्य, किन्तु आर्य प्रज्ञावाला होता है। ४. अनार्य और अनार्यप्रज्ञ— कोई पुरुष जाति से अनार्य और अनार्य प्रज्ञावाला होता है (२१६) । २१७ – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अज्जे णाममेगे अजदिट्ठी, अज्जे णाममेगे अणज्जदिट्ठी, अणजे णाममेगे अज्जदिट्ठी, अणजे णाममेगे अणजदिट्ठी। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आर्य और आर्यदृष्टि- कोई पुरुष जाति से आर्य और आर्य दृष्टिवाला होता है। २. आर्य और अनार्यदृष्टि- कोई पुरुष जाति से आर्य, किन्तु अनार्य दृष्टिवाला होता है। ३. अनार्य और आर्यदृष्टि- कोई पुरुष जाति से अनार्य, किन्तु आर्य दृष्टिवाला होता है। ४. अनार्य और अनार्यदृष्टि- कोई पुरुष जाति से अनार्य और अनार्य दृष्टिवाला होता है (२१७)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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