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________________ २५६ स्थानाङ्गसूत्रम् १. दीन और दीन परिवार- कोई पुरुष दीन है और दीन परिवारवाला होता है। २. दीन और अदीन परिवार- कोई पुरुष दीन होकर दीन परिवारवाला नहीं होता है। ३. अदीन और दीन परिवार- कोई पुरुष दीन न होकर दीन परिवारवाला होता है। ४. अदीन और अदीन परिवार- कोई पुरुष न दीन है और न दीन परिवारवाला होता है (२१०)। आर्य-अनार्य-सूत्र' २११– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अजे णाममेगे अजे, अजे णाममेगे अणजे, अणजे णाममेगे अजे, अणजे णाममेगे अणजे। एवं अजपरिणए, अजरूवे अजमणे अजसंकप्पे, अज्जपण्णे अजदिट्ठी अजसीलाचारे, अनववहारे, अजपरक्कमे, अजवित्ती, अजजाती, अजवभासी अजोवभासी, अजसेवी, एवं अजपरियाये अजपरियाले एवं सत्तरस्स आलावगा जहा दीणेणं भणिया तहा अजेण वि भाणियव्वा। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आर्य और आर्य- कोई पुरुष जाति से भी आर्य और गुण से भी आर्य होता है। २. आर्य और आर्य-कोई पुरुष जाति से आर्य, किन्तु गण से अनार्य होता है। ३. अनार्य और आर्य- कोई पुरुष जाति से अनार्य, किन्तु गुण से आर्य होता है। ४. अनार्य और अनार्य- कोई पुरुष जाति से अनार्य और गुण से भी अनार्य होता है(२११)। २१२- [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अजे णाममेगे अजपरिणए, अजे णाममेगे अणज्जपरिणए, अणजे णाममेगे अजपरिणए, अणजे णाममेगे अणजपरिणए]। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आर्य और आर्यपरिणत— कोई पुरुष जाति से आर्य और आर्यरूप से परिणत होता है। २. आर्य और अनार्यपरिणत— कोई पुरुष जाति से आर्य, किन्तु अनार्यरूप से परिणत होता है। ३. अनार्य और आर्यपरिणत— कोई पुरुष जाति से अनार्य, किन्तु आर्यरूप से परिणत होता है। ४. अनार्य और अनार्यपरिणत— कोई पुरुष जाति से अनार्य और अनार्यरूप से परिणत होता है (२१२)। २१३– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अजे णाममेगे अजरूवे, अजे णाममेगे अणजरूवे, अणजे णाममेगे अजरूवे, अणजे णाममेगे अणजरूवे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. आर्य और आर्यरूप- कोई पुरुष जाति से आर्य और आर्य रूपवाला होता है। २. आर्य और अनार्यरूप— कोई पुरुष जाति से आर्य, किन्तु अनार्य रूपवाला होता है। १. जिनमें धर्म-कर्म की उत्तम प्रवृत्ति हो, ऐसे आर्यदेशोत्पन्न पुरुषों को आर्य कहते हैं। जिनमें धर्म आदि की प्रवृत्ति नहीं, ऐसे अनार्यदेशोत्पन्न पुरुषों को अनार्य कहते हैं। आर्य पुरुष क्षेत्र, जाति, कुल, कर्म, शिल्प, भाषा, ज्ञान, दर्शन और चारित्र की अपेक्षा नौ प्रकार के कहे गये हैं। इनसे विपरीत पुरुषों को अनार्य कहा गया है। - -
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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