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________________ २५२ दीण - अदीण-सूत्र १९४— चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा — दीणे णाममेगे दीणे, दीणे णाममेगे अदीणे, अदीणे णाममेगे दीणे, अदीणे णाममेगे अदीणे ॥ १ ॥ स्थानाङ्गसूत्रम् पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. दीन होकर दीन— कोई पुरुष बाहर से दीन ( दरिद्र ) है और भीतर से भी दीन (दयनीय मनोवृत्तिवाला) होता है। २. दीन होकर अदीन— कोई पुरुष बाहर से दीन, किन्तु भीतर से अदीन होता है । ३. अदीन होकर दीन— कोई पुरुष बाहर से अदीन, किन्तु भीतर से दीन होता है। ४. अदीन होकर अदीन— कोई पुरुष न बाहर से दीन होता है और न भीतर से दीन होता है (१९४)। १९५ - चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— दीणे णाममेगे दीणपरिणते, दीणे णाममेगे अदीणपरिणते, अदीणे णाममेगे दीणपरिणते, अदीणे णाममेगे अदीणपरिणते ॥ २ ॥ पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. दीन होकर दीन - परिणत — कोई पुरुष दीन है और बाहर से भी दीन रूप में परिणत होता है। २. दीन होकर अदीन - परिणत — कोई पुरुष दीन होकर के भी दीनरूप से परिणत नहीं होता है। ३. अदीन होकर दीन - परिणत — कोई पुरुष दीन नहीं होकर के भी दीनरूप से परिणत होता है। ४. अदीन होकर अदीन - परिणत — कोई पुरुष न दीन है और न दीनरूप से परिणत होता है (१९५) ।. १९६ - चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— दीणे णाममेगे दीणरूवे, ( दीणे णाममेगे अदीरूवे, अदी णाममेगे दीणरूवे, अदीणे णाममेगे अदीणरूवे ॥३॥ पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. दीन होकर दीनरूप — कोई पुरुष दीन है और दीनरूप वाला ( दीनतासूचक मलीन वस्त्र आदि वाला) होता है। २. दीन होकर अदीनरूप — कोई पुरुष दीन है, किन्तु दीनरूप वाला नहीं होता है। ३. अदीन होकर दीनरूप— कोई पुरुष दीन न होकर के भी दीनरूप वाला होता है। ४. अदीन होकर अदीनरूप कोई पुरुष न दीन है और न दीनरूप वाला होता है (१९९६) । १९७ एवं दीणमणे ४, दीणसंकप्पे ४, दीणपणे ४, दीणदिट्ठी ४, दीणसीलाचारे ४, दीणववहारे ४, एवं सव्वेसिं चउभंगी भाणियव्वो । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा णामगे दीणमणे, दीणे णाममेगे अदीणमणे, अदीणे णाममेगे दीणमणे, अदीणे णाममेगे अदीणमणे । पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे १. दीन और दीनमन— कोई पुरुष दीन है और दीन मनवाला भी होता है। २. दीन और अदीनमन— कोई पुरुष दीन होकर भी दीन मनवाला नहीं होता ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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